(महात्मा ईसा के उपदेश)
अपने लिए पृथ्वी पर धन बटोर कर मत रखो जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध लगा कर चुरा ले जाते हैं। अपना धन स्वर्ग में बटोर कर रखो जहाँ से कोई नहीं चुरा सकता। जहाँ तुम्हारा धन होगा वहीं मन भी लगा रहेगा। शरीर का दीपक नेत्र है इसलिये यदि तुम्हारी दृष्टि निर्मल होगी तो सारा शरीर प्रकाशवान रहेगा। यदि तुम्हारी दृष्टि पापपूर्ण है तो बस अन्धकार का ही साम्राज्य समझो। कोई दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से प्रेम ओर दूसरे से अप्रेम रखेगा अथवा एक से दूसरे को हल्का समझेगा। तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। इसलिये मैं तुमसे कहता हूँ कि अपने लिए यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे और क्या पहनेंगे। क्या वस्त्र से शरीर और भोजन से प्राण बढ़ कर नहीं है?
आकाश के पक्षियों को देखो वे न बोते हैं और न काटते हैं, और न बटोर-बटोर कर खत्तियों गाड़ते हैं तो भी पिता उनको पालता है। फिर ऐ तुच्छ मनुष्यों! तुम में से कौन है जो चिन्ता करके अपनी अवस्था बढ़ा सके। वस्त्रों के लिए क्यों चिन्ता करते हो? वृक्षों को देखो वे कपड़ा नहीं पहनते तो भी कैसे बढ़ते हैं। यदि कल नष्ट हो जाने वाली घास को परमात्मा ऐसी सुन्दर पोशाक पहनाता है तो हे अल्प विश्वासियों! वह तुम्हें क्यों न पहनावेगा? तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें यह सब वस्तुएं चाहिएं। पहले उसके राज्य और धर्म की खोज करो यह सब वस्तुएं भी तुम्हें दी जायेंगी। कल के लिये चिन्ता न करो क्योंकि कल अपनी चिन्ता आप कर लेगा। आज का दुख ही आज के लिये बहुत है।
किसी पर दोष मत लगाओ ताकि तुम पर दोष न लगाया जाय क्योंकि जैसे तुम दोष लगाते हो वैसे ही तुम पर लगाया जायगा और जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हें नापा जायगा। तुम अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखते हो जब तुम्हें अपनी आँख का लट्ठा नहीं सूझता। तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो कि ठहर जा तेरी आँख के तिनके को निकाल दूँ। पहले अपने ऐब निकालो, तब दूसरों पर दोष लगाना।