आत्म-दंड

July 1941

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पिता की हत्या करके खुद राज्य सिंहासन पर बैठा हुआ टर्की का खलीफा मौतासर उन दिनों बड़ा प्रसन्न था। राज सिंहासन मिलने के उपरान्त प्राप्त होने वाले सभी सुख उसे उपलब्ध होने लगे थे। नाच रंग की धूम मची हुई थी।

एक दिन खलीफा मौतासर घोड़े पर सवार अपने साथियों सहित कहीं जा रहा था। जनशून्य स्थान में उसे एक बहुत बड़ी कब्र दिखाई दी। खलीफा की इच्छा उसे देखने की हुई और घोड़ा बढ़ाता हुआ वह उसके निकट पहुँचा। कब्र पर एक पत्थर लगा हुआ था। खलीफा ने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा तो उस पर लिखा हुआ था कि-”मैं सरीज, खुशरो का पुत्र गढ़ा हुआ हूँ इस कब्र के नीचे। लोभ के वश में मैंने राज्य सिंहासन पाया और इसके लिए मरवाया अपने बेगुनाह पिता को। मेरी मौत बनकर आया मेरा कुकर्म और मैं ताज सिर पर न रख सका छः महीने भी। अपने पिता की तरह मैं भी बैठ रहा हूँ इस पत्थर के नीचे।”

मौतसर को स्मरण आया कि पाप का क्या परिणाम होता है और उसी के जैसा कुकृत्य करने वाला एक दूसरा व्यक्ति किस प्रकार अकाल मृत्यु का शिकार हो चुका है। खलीफा के हृदय में हजार बिच्छुओं के काटने की पीड़ा होने लगी, वह अपने पाप का परिणाम स्मरण कर-करके सिर धुनने लगा। कहते हैं कि इस कब्र को देखने के बाद खलीफा सिर्फ तीन दिन ही जिन्दा रहा और रोते-रोते मर गया।

पाप करने वाले को उसकी आत्मा ही दंड देने की पर्याप्त क्षमता रखती है। पापी का हृदय सदैव जिस बेचैनी और अशाँति से जलता रहता है, वह नारकीय यातनाओं से किसी प्रकार कम नहीं होती। दुरात्मा मनुष्य राज्य-दंड से बच सकता है, पर आत्म-दण्ड से नहीं बच सकता।


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