पथिक! महान उद्देश्य को मत भूल।

July 1941

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जीवन दिन है और मृत्यु रात्रि। दिन के बाद रात्रि का आगमन अवश्यम्भावी है। जिसने जन्म लिया है, उसे मरना पड़ेगा। मनुष्य मृत्यु के दाँतों में उलझा हुआ है, क्या पता है कि कल का दिन देखने को मिलेगा या नहीं, पर जरा उसके मनसूबों को तो देखो-कैसी-कैसी लाखों, करोड़ों योजनाएं बना रहा है। दिन और रातें व्यतीत हो रही हैं, मानों जीवन के ऊपर सोने और चाँदी की आरियाँ चल रही हैं। आयु व्यतीत होती जा रही है परन्तु हम जानते हुए इसे जानने की चेष्टा नहीं करते।

जीवन नश्वर है। संसार की अन्य वस्तुएं भी नाशवान हैं, केवल धर्म ही सत्य है। तुम्हें जो कुछ करना है, आज कर लो, ऐसा न हो कि साँस रुक जाय और वह सब काम यों ही पड़े रहें, जिन्हें करने के लिए कल का दिन सोचा गया था। यदि कोई शुभ संकल्प मन में आवे तो उसे पूरा करने में विलम्ब मत लगाओ। वैभव स्थायी नहीं है, लक्ष्मी किसकी हुई है, अन्य संपदाएं भी अपनी नहीं है। नाशवान् प्राणी। यह वस्तुएं तेरी नहीं, ईश्वर की हैं। इनका स्वामी तू नहीं ईश्वर है। तेरा तो शरीर भी नहीं है, इसलिए निस्पृह होकर वह कार्य कर ले जिससे भविष्य में तुझे पछताना न पड़े। यह गंदी सराय उस सच्चिदानन्द आत्मा का घर नहीं है। पथिक। इस बात को क्यों भूला जा रहा है कि मैं रास्तागीर हूँ और एक महान उद्देश्य तक पहुँचने के लिए यात्रा कर रहा हूँ।

भाग 2 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 7


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