(श्रीमती एलेक्जेण्ड्रा डेविड नील)
तिब्बत के लामा योगियों के सम्बन्ध में अधिक जानकारी प्राप्त करने के निमित्त एक बार मैं उस सीमा प्रान्त में पहुँची, जो अब जेचुएन और काँसू नामक चीनी प्रान्तों में मिला लिया गया है। तागन से कुँका दर्रे तक छह अन्य यात्री भी हमारे साथ थे, क्योंकि वहाँ घना जंगल था और तिब्बती डाकुओं का बड़ा डर था। हम लोग अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थे, इसलिए अन्य साथियों को हमारे ऊपर बड़ा भरोसा था। इन यात्रियों में पाँच तो चीनी व्यापारी थे, छठा ‘बोनपो’ न्गैग्स्पा (आदि तिब्बती ताँत्रिक) था। इसके बाल इतने लम्बे थे कि सिर पर पगड़ी की तरह बंध जाते थे।
इस तान्त्रिक को अपना साथी पाकर मुझे विशेष प्रसन्नता हुई क्योंकि मैं तो तिब्बत की आध्यात्मिक खोजों के लिये यात्रा ही कर रही थी। मैंने उसको सुस्वादु भोजन कराना आरम्भ किया और अपने निकट संपर्क में लाने के लिए उससे वार्तालाप का क्रम बढ़ाया। बातचीत करने पर पता चला कि वह अपने गुरु बोनपो के पास उसके बड़े भारी अनुष्ठान मैं सम्मिलित होने के लिए जा रहा था। यह अनुष्ठान किसी बलवान प्रेतात्मा को वश में करने के लिए किया जा रहा था। मेरी उत्कंठा बढ़ी और मैंने चाहा कि मैं भी उसके गुरु का अनुष्ठान देखूँ। पर उसने स्पष्ट कह दिया कि ‘यह असंभव है’ आप उनके अनुष्ठान में सम्मिलित नहीं हो सकती।’
फिर भी मैंने अपने प्रयत्न को छोड़ा नहीं और निश्चय किया कि इसके साथ अवश्य जाऊँगी। मैंने अपने नौकरों को होशियार कर दिया कि ‘इस पर गुप्त दृष्टि रखना, कहीं भाग न जाये। हमें इसी के पीछे चलना है।’ न जाने कैसे वह ‘न्गैग्स्पा’ हमारी चालाकी को ताड़ गया। उसने मुझसे नम्रतापूर्वक सरल स्वभाव से कहा-”मैं किसी कपट के कारण आपको वहाँ जाने से नहीं रोकता। वहाँ बाहर के आदमियों का जाना वास्तव में ही वर्जित है। न मानने से गुरु के कार्य में विघ्न पड़ेगा और आपको भी हानि उठानी पड़ेगी। मैंने आपके आगमन और इच्छा की सूचना आत्म-शक्ति के द्वारा गुरु जी को दे दी है, यदि वे उचित समझेंगे, तो आपको स्वयं बुला लेंगे।”
उसके कथन पर मुझे विश्वास न हुआ और सोचती थी, कई बार यह शिष्य लोग झूँठ बोलते हैं, वैसे ही शायद यह भी कह रहा होगा। मैं चुप हो गई, पर अपने इरादे में जरा भी परिवर्तन नहीं किया। दर्रा पार करने के पश्चात् डाकुओं का खतरा कम हो गया था, इसलिए चीनी व्यापारी तो हमारा साथ छोड़कर अपने इच्छित स्थानों को चले गये। अब उनमें से एक न्गैग्स्पा ही हमारे साथ था। आगे की यात्रा करते हुए हम लोग चले जा रहे थे। हमने देखा कि छह घुड़-सवार तेजी से हमारी ओर दौड़े हुए चले आ रहे हैं। वे मेरे सामने आकर ठहर गये और मक्खन आदि का कुछ प्रसाद देकर बोले कि आचार्य बोनपो न्गैग्स्पा ने हमें आपके पास संदेश कहने भेजा है कि ‘किलीखोर’ (तन्त्र वेदी) के निकट केवल विचार छोड़कर इस समय वापिस ही चली जावें।
मैंने उनकी बात मान ली और वापिस लौट आई। तब मैंने जाना कि सचमुच यह लोग-आत्म शक्ति द्वारा समाचार कहने और सुनने की क्रिया को जानते हैं।
उत्तम क्रम सभी उत्तम वस्तुओं की आधार शिला है।