स्वप्नों की सचाई

December 1941

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(ले. श्री रामभरोसे पाठक, नदी गाँव, दतिया स्टेट)

आज का सभ्य समाज स्वप्न का अस्तित्व मानने को तैयार नहीं है। उनका विचार है, कि जो हम दिन में देखते हैं तथा जिन विचारों का हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ता है वस्तुतः वही विचार स्वप्न का रूप लेकर रात्रि में अवतरित होते हैं, दूसरे शब्दों में स्वप्न हृदयाँकित विचारों की शृंखला है। सर्वथा नहीं तो कुछ आँशिक भावों में उनकी यह धारणा है भी ठीक। क्योंकि हम, प्रायः उन ही स्वप्नों को देखा करते हैं जिनको कार्य रूप से दिन में देखते हैं जैसे बालक स्वप्न देखेगा तो खेलने का। अमुक लड़का मेरे पीछे दौड़ रहा है, अमुक लड़का मुझे मारने दौड़ा है, मेरी पतंग अमुक लड़का छीने लिये जा रहा है” इत्यादि या कभी-कभी पाठशाला के विषय में भी। सिवाय इन कामों के और उनके पास धरा ही क्या। इन विचारों का रात्रि में इस प्रकार ताँता लग जाता है कि कभी-कभी आवेश से आकर जोर-जोर से पुकारने लगता है, किन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वह ऐसे स्वप्न देखा करते हैं जिनको न तो वैसा विचार सकते थे और न कभी देखे थे। यह स्वप्न बड़े विचित्र होते हैं।

हमारे पूर्वज, ऋषि, मुनियों ने इनका पर्याप्त अन्वेषण किया था, उन्होंने स्वप्नों के वर्ग किये, उन्हें समयानुसार भिन्न-भिन्न फलदाता कहा, इस विषय पर ग्रन्थ रचना भी की गई, उनके प्रतिपादन से यह सिद्ध नहीं होता कि स्वप्न केवल ‘हृदयाँकित विचारों की शृंखला है” अपितु वे तो उसे अशुभ सूचक तथा अमुक फलदाता भी कहते हैं। वे उसे भविष्य की अनिष्ट तथा इष्ट स्वरूपिणी चेतावनी कहते हैं तथा उससे भविष्य की झलक देखते हैं वे वर्षों व महीनों के आने वाले भविष्य फल का आज रात्रि से तारतम्य होना बतलाते हैं। आधुनिक समय के मनोविज्ञान विशारदों ने भी सिद्ध कर दिखाया है कि स्वप्न केवल विचारों की सारहीन श्रृंखला ही नहीं हैं, अपितु वे सुस्पष्ट तथा सच भी होते हैं। उन से वैज्ञानिक लोग कई प्रकार के अनुमान निकालने लगे हैं तथा कथित अनुमान ठीक भी होते हैं।

स्वप्न को सारहीन विचार श्रृंखला कह कर नहीं टाला जा सकता। उसमें कुछ तथ्य अवश्य है। उसमें हमारे जीवन संघर्ष की छाया मात्र अवश्य निहित रहती है, स्वप्न हमें सुमार्ग पर लाने का प्रयत्न करता है। भगवान् अन्तर्यामी हमें अपने भविष्य के बारे में तथा आगे आने वाली आपदाओं के विषय में चेतावनी करते हैं। वर्तमान परिस्थिति में दूरस्थ कुटुम्ब के आपदग्रस्त होने का संकेत करते हैं, हमारे प्रिय भोजन पर आने वाली आपत्तियों का विश्लेषण करते हैं, हमारी यात्रा पर भी दृष्टि डालते हैं।

मेरा यह स्वयं का अनुभव है कि जब मैं एक विशेष प्रकार का स्वप्न देखता हूँ तो मैं निश्चित दिनों में शरीर से अस्वस्थ हो जाता हूँ तथा एक पूर्व निश्चित अवधि के उपराँत स्वास्थ्य लाभ करता हूँ। मैं अपने ऊपर आने वाली आपदाओं का भी विचार कर लेता हूँ। अपने कुटुम्ब के किसी प्राणी पर कोई आने वाला कष्ट भी मालूम कर लेता हूँ कुछ वर्ष हुए मैं बाहर गया था, एक रात को मैंने स्वप्न देखा कि घर पर माता जी की अंगुली में एक फोड़ा हो गया है इसी से वे बहुत दुखी हैं। सुबह होते ही मैंने झट से घर को प्रस्थान कर दिया। घर जाकर जो देखा वास्तव में माताजी की अंगुली में एक फोड़ा उठ आया है और उससे वे दुखी हैं तथा मेरी बड़ी याद कर रही हैं और मेरे बुलाये जाने का अनुरोध कर रहीं हैं, तभी तक मैं पहुँच गया। ऐसे एक बार क्या कई बार हुआ और स्वप्न स्पष्ट हुआ तथा फलित भी।

जगद्गुरु श्री स्वामी शंकराचार्य को भगवान परम पिता ने स्वप्न में ही वैराग्य धारण करने का उपदेश किया था। स्वामी जी ने उसे शिरोधार्य किया, जो आगे चल कर जैसा फलित हुआ, विज्ञजनों के समक्ष है। महात्मा राजकुमार सिद्धार्थ को स्वप्न में ही वैराग्य दृश्य दिखाई दिये, जिससे उन्हें संसार से घृणा हो गई थी और संसार छोड़ कर वैराग्य ले लिया, जो आज दिन भी उनका नाम अजर अमर है। श्री विवेकानन्द जी को भी कुछ स्वप्न में ही उपदेश हुआ बतलाया जाता है। यदि स्वप्न कोरी विचार श्रृंखला ही है, तब फिर यह बातें सच कैसे! बस एक बात है, यदि स्वप्न घोर निद्रा में तथा शुद्ध हृदय से हुआ तो सम्भव हो सकता है और फिर भगवान की इच्छा। परन्तु वे परम पिता परमेश्वर हमें यदा कदा सुमार्ग प्रदर्शन कराते हैं, किन्तु उस मार्ग पर अनुगमन करना हमारे मन पर अवलम्बित है।


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