स्त्रियाँ चक्की पीसे

December 1941

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(श्रीमती सुशीलादेवी मिश्रा)

स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम अत्यन्त आवश्यक हैं आज कल हमारी देवियाँ बिना व्यायाम के 60 प्रतिशत बीमार-सी बनी रहती हैं। देवियाँ फैशन की इतनी गुलाम बन गई हैं कि, वह अपने हाथों से कार्य करना तक पसन्द नहीं करतीं। नौकर काम करता है, वह चाहे अच्छा करे या बुरा, पर उन्हें स्वयं हाथ लगाना अच्छा नहीं लगता। पुराने जमाने में हमारे घरों में इतने काम काज होते थे कि, उनके करते रहने से स्त्रियों का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था, और आर्थिक स्थिति भी अच्छी रहती थी। मगर आजकल स्त्रियाँ कुछ व्यायाम नहीं करती, इसलिए वह बीमार बनी रहती हैं। पहले प्रातः काल का समय चक्की पीसने का होता था, प्रत्येक स्त्री अपने घर का 5-6 सेर अनाज पीसती थी, उसके बाद अन्य गृह कार्य करती थी, इस चक्की से प्रातः काल का अच्छा व्यायाम हो जाता था, चक्की एक ऐसा व्यायाम है कि इसके द्वारा शरीर के सब अंगों का अच्छा व्यायाम हो जाता है और इसके द्वारा सब अंग सुगठित और दृढ़ हो जाते हैं। जो स्त्रियाँ व्यायाम नहीं करतीं, उनके शरीर प्रायः शिथिल रहते हैं और गर्भावस्था के दिन किसी प्रकार सही सलामत निकल भी गए, आराम से कट गए, तो फिर प्रसव के समय इनको बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वास्तव में वह समय बड़े संकट का होता है, व्यायाम न करने वाली स्त्रियों को प्रसव वेदना का जितना कष्ट उठाना पड़ता है, उतना व्यायाम करने वाली महिलाओं को नहीं उठाना पड़ता। प्रति वर्ष हजारों स्त्रियाँ प्रसव काल में अपने प्राण तक दे बैठती हैं, इस सबके हम स्वयं उत्तरदायी हैं। जो स्त्रियाँ व्यायाम किया करती हैं, उन्हें इन भावी संकटों का सामना नहीं करना पड़ता। व्यायामों में चक्की का व्यायाम सबसे उत्तम है। डॉक्टर लोग भी गर्भवती स्त्रियों को चक्की पिसवाना ही बतलाते हैं। गाँवों की स्त्रियाँ जो सदैव चक्की पीसती हैं, कभी रोगों से ग्रसित नहीं होतीं। प्रसव के दिन उन्हें कुछ भी कष्टप्रद नहीं मालूम होते। बहुत सी स्त्रियों के तो खेतों पर काम करते हुए प्रसव हो जाता है और वह बच्चे को गोद में उठाकर मजे में घर चली आती हैं, यह है व्यायाम की खूबी! इसलिए प्रत्येक गृह देवी को चक्की पीसने की आदत अवश्य डालना चाहिए। मशीन की चक्की का आटा भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता, उसके सब पौष्टिक कण जल जाते हैं, फिर वह पचने में भी अधिक समय लेता है। इस आटे से शरीर को, पोषक तत्व नहीं मिलते। हाथ की चक्की का आटा अत्यन्त पौष्टिक, रक्त वर्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें सब अपेक्षित पौष्टिक तत्व विद्यमान रहते हैं, इसलिए सदैव हाथ की चक्की का पिसा आटा खाना चाहिए और हाथ का आटा भी अपने हाथ का अधिक लाभकारी होता है। इस प्रकार जहाँ आप अपना, अपने बच्चों का और अपने पुरुषों का स्वास्थ्य अच्छा रखेंगी, वहाँ आपको पैसों की भी बचत होगी, इसलिए देवियों को घर में चक्की बनानी चाहिए, और उसी का पिसा आटा खाना चाहिए।

जिस प्रकार स्वास्थ्य के लिए चक्की पीसना हितकर है, उसी प्रकार चरखा कातना भी परमोपयोगी है। देशबन्धु महात्मा गाँधी ने चरखे की महत्ता का बहुत कुछ वर्णन किया है, इसके कातने से जहाँ हलका व्यायाम हो जाता है, वहाँ यह आर्थिक समस्या को भी सुलभ करता है। यदि बहिनें उपर्युक्त प्रार्थना को कार्यान्वित करेंगी तो स्वयं, अपने बच्चों को और अपने पुरुषों को स्वस्थ रखते हुए, उन्हें अनेक आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त करेंगी।


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