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December 1941

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आपकी भेजी हुई अमूल्य उपदेश पूर्ण पुस्तकें प्राप्त हुई, आशातीत प्रभावशाली हैं। आपकी दो पुस्तकें तो बहुत ही अधिक रोचक लगी। एक तो ‘मैं क्या हूँ? दूसरी ‘वशीकरण की सच्ची सिद्धि।’ जब तक पढ़ नहीं लिया, दिन उन्हीं में लगा रहा। पहली पुस्तक का तो हृदय पर तीन चार दिन तक प्रभाव रहा।

-राजकुमारी ‘ललन’ मैनपुरी एस्टेट।

‘धनवान बनने का गुप्त रहस्य’ जैसी निराशों को आशा प्रदान करने वाली पुस्तकें हिन्दी में तो मेरे देखने में कोई नहीं आईं। वास्तव में ऐसी ही पुस्तकों की आज देश को आवश्यकता है।

-विजयकुमार भट्ट ए काशी।

‘बुद्धि बढ़ाने के उपाय’ पुस्तक से हमारी पाठशाला के विद्यार्थियों को बहुत लाभ हुआ है। कई सुस्त लड़के तेज हो गये हैं। कई की अविकसित शक्तियों का महत्वपूर्ण विकास हुआ है।

-शंकरदत्त हैडमास्टर, प्रतापनगर।

अखण्ड ज्योति जब से हमारे घर में आई है। सब प्रकार के कलश-कलह मिट गये हैं। हमारे परिवार में कई व्यक्ति हैं। इनमें से जो पढ़े हैं, वे तो स्वयं आदि से अन्त तक इसका पाठ करते हैं, एक-एक अक्षर को सुन लेते हैं। आपके अमूल्य विचारों ने हमारे घर को सचमुच स्वर्ग बना दिया है। ऐसा मानसिक भोजन प्राप्त करने से जो लोग अज्ञान या लोभ के कारण वंचित रह जाते हैं, उन्हें मैं अभागा ही कहूँगा।

-मोतीचन्द श्यामचन्द भाटिया, सूरत।

अखण्ड-ज्योति के तेरह ग्राहक बना कर भेज रहा हूँ। मैंने अपने उन मित्रों को आग्रह पूर्वक अनुरोध किया था, क्योंकि मैं समझता हूँ कि इन लोगों का सब से बड़ा हित इसी में है। इस छोटे से प्रयत्न में मुझे यज्ञ करने जैसी शान्ति मिली है।

-एन वी राजैय्या, चिविरम् स्टेट।

‘सूर्य चिकित्सा’ और ‘प्राण चिकित्सा’ की विधि से इलाज करने का हमारा शफाखाने बहुत सफलता पूर्वक चल रहा है। अब तो रोगियों की संख्या प्रतिदिन 60 से भी ऊपर पहुँचती है। इनके द्वारा ज्यादा की तरह जो लाभ होता है, उसके कारण हम लोग यश और धन दोनों की सन्तोषजनक रीति से प्राप्त कर रहे हैं।

-भीष्मप्रसाद पाण्डेय, पंचवटी।

मैस्मरेजम विद्या सीखने की जिज्ञासा आपकी ‘परकाया प्रवेश’ और मानवीय विद्युत के चमत्कार’ पुस्तकों ने पूरी करदी है, त्राटक बहुत आगे बढ़ गया है। अब मैं बालकों को ही नहीं बड़ी आयु के स्त्री पुरुष को भी दृष्टिपात द्वारा बेहोश कर देने में अच्छी तरह सफल होने लगा हूँ।

-टी सी भल्ला, अमृतसर।

तंदुरुस्त बनने के लिए अब तक मैंने अनेका-अनेक कठिन क्रियाएं की हैं, तरह-तरह के मूल्यवान भोजन किये हैं, पर सदैव असफलता ही प्रात होती रही। ‘स्वस्थ और सुन्दर बनने की विद्या’ पुस्तक ने मेरी आँखें खोल दी हैं। अब मेरा पुराना दृष्टिकोण बिलकुल बदल गया है और अनुभव करने लगा हूँ कि अब तक क्यों असफल से अब मेरा लोक और परलोक आनन्दमय बन जायगा।

-गणपति शंकर पिल्लई, त्रावनकोर।

शीघ्र पतन और स्वप्न दोष के कारण मेरा शरीर जर्जर हो गया था और दाम्पत्ति जीवन बड़ा कलह मय था। ‘भोग में योग‘ पुस्तक की सहायता से मेरा कायाकल्प हो गया। इन दोनों राक्षसों से पीछा छूट गया। इसका सारा श्रेय ‘भोग में योग‘ पुस्तक को ही है।

-पूरनचन्द ‘आजाद’ बलिया।


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