जीवन में केवल अवस्था-भेद ही से नहीं, प्रत्युत अवस्थानुसार कर्त्तव्य पालन करने से श्रेय मिलता है।
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स्वतन्त्र और निष्पक्ष वाद-विवाद सत्यता के दृढ़तम मित्र सिद्ध होते हैं।
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मनुष्य का मूल्य तथा उसकी वीरता उसके हृदय एवं संकल्प पर अवलम्बित हैं, इसी में सच्ची मर्यादा का अस्तित्व है।