स्वार्थ, मनुष्य-जाति का सर्व-प्रधान अभिशाप है।
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चूँ-चूँ करने वाले किवाड़ों को देखकर बड़-बढ़ाओं मत, बल्कि उनके जोड़ो में तेल डाल दो।
अच्छे दिन, बुरे दिन, न्यों ही सभी दिन व्यतीत हो जाते हैं।