आपे बीजि आपे हरि बाहु,
नानक हुकमी आबहु जाहु।
मनुष्य स्वयं कार्मों का बीज बोता है, स्वयं ही उसका फल खाता है, ईश्वर की आज्ञा के अन्दर इसका विभिन्न योनियों में पुनर्जन्म होता है।
‘जे जी सिरठि उपाई। वैखा विणु करमा किमि लैलई।”
शुभ और उचित कर्मों का फल ही मिलता है, जितनी सृष्टि दिखाई पड़ रही है, सबको कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।
“चंगा या बुराइयाँ बाचे धरम हजूर।”
शुभ कर्म और कुकर्म उस धर्मराज परमेंश्वर के सन्मुख प्रगट हैं। इस लोक में और परलोक में सब को अपने ही कर्मों का फल मिलता है, और का नहीं।
जे बडु आपि जाणै आपि अपि नानक नदरी करमी दाति।
ईश्वर की महिमा अथवा प्रतिष्ठा का पूर्ण वर्णन वह स्वयं ही जानता है, परन्तु नानक इतना जानता है, कि कृपा और अनुग्रह कर्मों (के अनुसार आचरण करने) पर होती है।
तद बिन सिद्धी किने न पायाँ, करमी मिलें नहीं ठाक रहाई।
बल और महत्व जिसको देता है उसे प्राप्त होता है और उसे भी तू न्याय के आधार पर कर्मों के अनुसार देता है।