सन् 19 में रोम नगर के पोम्पाई नगर के निकट एक बड़ा ज्वालामुखी फटा। यह दुर्घटना इतने जोर की हुई कि वह विशाल नगर खँडहर बन गया और ज्वालामुखी की धूलि में दबकर सदैव के लिए भूगर्भ में विलीन हो गया।
पौने दो हजार वर्ष के लम्बे अरसे के बाद यह बात केवल इतिहास के पन्नों पर धुँधली तरह से अंकित रह गई थी। किसे मालूम था कि यह नगर अभी बिलकुल ही नष्ट नहीं हुआ है। भूतत्व वेत्ताओं ने उन टीलों को खोदा तो उसमें से प्राचीन गौरव की साक्षी देता हुआ भग्नावेश एक सुन्दर नगर निकल आया।
उस समय भूकम्प से बचे हुए निवासियों ने अपनी विपत्ति के कुछ संस्मरण लिखे थे, जो अब तक सुरक्षित हैं। उनमें लिखा है कि जब भूकम्प के धड़ाके हुए तो लोग भागने लगे। जिसे जहाँ बन पड़ा भागा। कुछ बच गये कुछ मर गये। ‘भागने वालो में से कुछ ने राजद्वार के प्रहरी से कहा चलो-तुम भी भाग चलो।’ उसने उत्तर दिया-’मेरा कर्तव्य मुझे अपनी ड्यूटी पर से हटने की आज्ञा नहीं देता।’ वह अपनी चपरास पहने हुए जहाँ की तहाँ खड़ा रहा और उस महान नगर के साथ साथ समाधि मग्न हो गया।
खँडहर के तह तक खुदाई पहुँची, तो देखा कि कि एक प्रहरी का अस्थि-पिंजर ज्यों का त्यों खड़ा है। चपरास का बिल्ला और तलवार की गलित प्रतिमा उसी पिंजर से सटी हुई है। वह चाहता तो दूसरे लोगों की तरह भाग सकता था, पर कर्तव्य ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
रोम ने उस कंकाल का शाही स्वागत किया और देश ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शताब्दियाँ बीत गई, पर वह रोम का कर्मनिष्ठ प्रहरी सीधा खड़ा हुआ है। दर्शकों को वह कंकाल उपदेश देता है कि-’भागिये मत, अपने कर्तव्य-स्थल पर खड़े रहिए, क्योंकि मनुष्य का गौरव इसी में सन्निहित है।