इंग्लैंड के सुविख्यात व्यक्तियों में बहुत ऊँचा स्थान रखने वाले लार्ड ब्रुहम उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य भाग में उज्ज्वल नक्षत्र की तरह चमक रहे थे। अगाध विद्या और तीव्र बुद्धि ने उनकी सम्पन्नता में चार चाँद लगा दिये थे। वे जैसे अद्वितीय बैरिस्टर थे, वैसे ही सूक्ष्मदर्शी दार्शनिक और वैज्ञानिक थे। श्री और धी दोनों की ही उन पर परिपूर्ण कृपा थी।
लार्ड ब्रुहम की डायरी में एक ऐसी घटना का उल्लेख मिला है, जिसके आधार पर मनुष्य के मरणोत्तर जीवन पर कुछ प्रकाश पड़ता है। वे लिखते हैं-”ता. 19 दिसम्बर को कड़ाके की ठंड थी, मैं स्वीडन के बर्फीले प्रदेशों में घूम कर लौटा था। कुछ गरमाने की इच्छा से स्नानागार में गया और गरम पानी से भरे हुए टब में बैठ कर गर्मी का आनन्द अनुभव करने लगा। सामने कुर्सी पर पहनने के लिए सूखे कपड़े रखे हुए थे। जब स्नान कर चुका तो मैंने चाहा कि उठकर कपड़े पहन लूँ। सामने कुर्सी पर निगाह गई तो एक बड़ी विचित्र बात देखने में आई। मेरा बालसखा जार्ज कुर्सी पर बैठा हुआ था। मुद्दतों से हजारों मील दूरी के प्रवास में रहने वाला यह जार्ज मेरे बन्द स्नानागार में अचानक क्यों आया? इस प्रश्न ने मुझे सन्न कर दिया। वह मेरी ओर स्थिर दृष्टि से देख रहा था। मुझे भय और कंपकंपी का अनुभव हुआ और अचेत हो गया।”
“जब मुझे होश आया तो देखा कि मैं टब से बाहर पड़ा हुआ हूँ। अपने को सँभाल कर कपड़े पहने और बाहर आया। चूँकि मैं सदा से तर्क-प्रिय रहा हूँ, इसलिए सोचने लगा शायद किसी अज्ञात कारण से मैं निद्रित हो गया होऊँगा और सपना देखा हो। इस प्रकार की और भी कई कल्पना की, पर कुछ सन्तोष नहीं हुआ, क्योँकि जिस समय मैंने वह दृश्य देखा था, उस समय बिलकुल सावधान होने का मुझे अच्छी तरह स्मरण है और यह भी स्मरण है कि मूर्ति को कई बार आंखें मलमल कर तर्क और परीक्षण की दृष्टि से देखा था। जो हो, मैंने इस घटना को याददाश्त की पुस्तक में नोट कर लिया।”
कुछ ही दिन बीते थे कि हिन्दुस्तान से मेरे पास एक पत्र आया, जिसमें लिखा हुआ था कि-”ता. 19 दिसम्बर सन् 1799 ई को जार्ज का स्वर्गवास हो गया।” अब मुझे जार्ज के सम्बन्ध में एक बहुत पुरानी स्मृति याद आई। एडिनवरा स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर जब मैं विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ था, तो जार्ज भी मेरे साथ था। हम दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे और आपस में बड़े प्रेम सूत्र में बँध गये थे। जब हम दोनों साथ-साथ घूमने जाते, तो विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद किया करते थे। इन आलोच्य विषयों में ईश्वर और आत्मा का प्रश्न प्रमुख रहता था। एक दिन हम दोनों ने एक प्रतिज्ञा लिखी कि-”अगर मृत्यु के उपरांत कोई आत्मा नाम की वस्तु शेष रहती हो, और वह आत्मा जीवित मनुष्यों के सम्मुख प्रकट होने की योग्यता रखती हो, तो हम दोनों में से जो पहले मरेगा, वह दूसरे को दर्शन देकर सन्देह निवारण करेगा।” इस प्रतिज्ञा-पत्र पर हम दोनों ने अपने शरीर में से खून निकाल कर हस्ताक्षर किये।
समय के प्रवाह ने कालेज की पढ़ाई के बाद हम दोनों को एक दूसरे से बहुत दूर कर दिया। जार्ज हिन्दुस्तान चला गया और वहीं किसी नौकरी पर चिपक गया। बरस दो बरस हम दोनों का पत्र व्यवहार रहा, पीछे दोनों ही भूल गये। कम से कम मुझे तो
पिछले पन्द्रह वर्ष में कभी भी स्मरण नहीं आया था। अचानक उसकी छाया मूर्ति देखने और उसके बाद मृत्यु समाचार सुनने से यह पूर्व प्रतिज्ञा स्मरण हो आई है।
इस आकस्मिक घटना से अब मेरी एक चिरकालीन उलझन का समाधान हो गया कि मरने के बाद आत्मा का अस्तित्व रहता है या नहीं।”
लार्ड ब्रुहम के अनुभव में आई हुई यह घटना रेवेएडर फेडरिक जार्जली की (Glimpses of the Supernatural) नामक ग्रन्थ में था एक दूसरी पुस्तक (Phantasms of the Living) में विस्तार पूर्वक वर्णित किया है।