नम्रता का आभूषण

December 1941

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(ऋषि तिरुवल्लुव)

नम्रता और मधुर भाषण से बढ़कर भला मनुष्य का और क्या आभूषण हो सकता है? जिसके मुख से दूसरों को आनन्दित करने वाली वाणी निकलती है, वह एक उदार दानी है, जो अपना महा प्रसाद याचकों और अयाचकों को समान रूप से सर्वत्र वितरण करता है। ऐसा व्यक्ति दुख और दारिद्र का शिकार नहीं हो सकता। जो रत्नों की कोठी खोल बैठा है, उसे पाइयों का अभाव नहीं होगा। स्वार्थ रहित होकर और दूसरों की भलाई के लिए जो वचन कहे हैं, वे ही यथार्थ में मधुर हैं। ऐसी मधुर वाणी सुनने वाले और सुनाने वाले के हृदय को जमाती है, उनमें शान्ति और शीलता के अंकुर उपजाती है, सेवा भावी और विनम्र वक्ता के लिए इस संसार में साथियों, मित्रों और सहायकों की कुछ भी कमी नहीं रह सकती।

संसार में अनमोल पदार्थ एक ही है-मधुर वाणी। क्योंकि उसमें दया, प्रेम का मधुर रस भरा रहता है। सोने-चाँदी का दान तुच्छ है, वह बेचारा उन वचनों की समता नहीं कर सकता, जो हताशों को उत्साह प्रदान करते हैं, जो भटको को राह पर लाते हैं, जो पाप की तपन से जलने वालों के मन में धर्म का जल छिड़कते हैं और जो अन्धकार में भटकने वालों को प्रकाश प्रदान करते हैं। ऐसे वचनों का दान हीरे और लालों के दान से कैसे कम होगा? जिनके हृदयों से सत्य प्रिय और हितकर वचन निकलते हैं, सत्य समझिए धर्म का निवास स्थान उन्हीं के अन्दर हैं। पवित्र भाषण एक प्रकार का प्रवाह है जो वक्ता के कलुषित विचारों को अपने बहाव में बहा ले जाता है। मधुर-भाषी ही स्वर्ग का अधिकारी है।

यदि मधुर भाषण के महत्व को लोग समझ जावें तो कड़वी और दुष्ट वाणी क्यों बोलें? हाय! लोग मीठे फलों को छोड़कर कडुए, खट्टे और कच्चे फलों को क्यों कुतरते फिरते हैं? मधुर भाषण क्यों छोड़कर कड़वी वाणी क्यों बोलते हैं?


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