(अखण्ड ज्योति कार्यालय से प्रकाशित ‘धनवान बनने के गुप्त रहस्य’ पुस्तक के कुछ पृष्ठ)
सच्ची दौलत का मार्ग आत्मा को दिव्य गुणों से सम्पन्न करता है। सच समझिये हृदय की सद्वृत्तियों को छोड़ कर बाहर कहीं भी सुख शान्ति नहीं है। भ्रम वंश भले ही हम बाह्य परिस्थितियों में सुख ढूँढ़ते फिरे। यह ठीक है कि कुछ कमीने और निकम्मे आदमी भी अनायास धनवान हो जाते हैं, पर असल में वे धनपति नहीं हैं। यथार्थ में तो तुम से अधिक दरिद्रता भोग रहे हैं, उनका धन बेकार है, अस्थिर है और बहुत अंशों में तो वह उनके लिये दुखदायी भी है। दुर्गुणी धनवान कुछ नहीं, केवल एक भिक्षुक है। मरते समय तक जो धनी बना रहे, कहते हैं कि वह बड़ा भाग्यवान था, लेकिन हमारा मत है कि वह अभागा है, क्योंकि अगले जन्मों में अपने पापों का फल तो वह स्वयं भोगेगा, किन्तु धन को न तो भोग सका और न साथ ले जा सका। जिसके हृदय में सद्वृत्तियों का निवास है, वही सबसे बड़ा धनवान है, चाहे बाहर से वह गरीबी का जीवन ही क्यों न व्यतीत करता हो सद्गुणी का सुखी होना निश्चित है। समृद्धि उसके स्वागत के लिए दरवाजा खोले हुए खड़ी है। यदि आप स्थायी रहने वाली सम्पदा चाहते हैं, तो धर्मात्मा बनिये। लालच में आकर अधिक पैसे जोड़ने के लिये दुष्कर्म करना, यह तो कंगाली का मार्ग है। खबरदार रहो! कि लालच के वशीभूत होकर सोना कमाने तो चलो पर बदले में मिट्टी ही हाथ लग कर न रह जाये।
एडीसन ने एक स्थान पर लिखा है कि “देवता लोग जब मनुष्य जाति पर कोई बड़ी कृपा करते हैं, तो तूफान और दुर्घटनाएं उत्पन्न करते हैं, जिससे कि लोगों का छिपा हुआ पौरुष प्रकट हो और उन्हें अपने विकास का अवसर प्राप्त हो।” कोई पत्थर तब तक सुन्दर मूर्ति के रूप में परिणित नहीं हो सकता, जब तक कि उसे छैनी हथौड़े की हजारों छोटी-बड़ी चोटें न लगें। एकमंडवर्क कहते हैं कि -”कठिनाई, व्यायामशाला के उस उस्ताद का नाम है, जो अपने शिष्यों को पहलवान बनाने के लिए उनसे खुद लड़ता है और उन्हें पटक-पटक कर ऐसा मजबूत कर देता है कि वे दूसरे पहलवान को गिरा सकें” जान बानथन ईश्वर से प्रार्थना किया करते थे कि-”हे प्रभु! मुझे अधिक कष्ट दे, ताकि मैं अधिक सुख भोग सकूँ।”
जो वृक्ष पत्थरों और कठोर भूभागों में उत्पन्न होते हैं और जीवित रहने के लिए सर्दी, गर्मी, आँधी आदि से निरन्तर युद्ध करते हैं, देखा गया है कि वे वृक्ष अधिक सुदृढ़ और दीर्घजीवी होते हैं। जिन्हें कठिन अवसरों का सामना नहीं करना पड़ता, उनसे जीवन भर कुछ महत्वपूर्ण कार्य नहीं हो सकता। एक तत्व ज्ञानी कहा करता था कि “महापुरुष दुखों के पालने में झूलते हैं और विपत्तियों का तकिया लगाते हैं। आपत्तियों की अग्नि हमारी हड्डियों को फौलाद जैसी मजबूत बनाती है।” एक बार एक युवक ने एक अध्यापक से पूछा -”क्या मैं एक दिन प्रसिद्ध चित्रकार बन सकता हूँ?” अध्यापक ने कहा-’नहीं।’ इस पर उस युवक ने आश्चर्य से पूछा -’क्यों?’ अध्यापक ने उत्तर दिया -’इसलिये कि तुम्हारी पैतृक संपत्ति से एक हजार रुपया मासिक आमदनी घर बैठे हो जाती है।’ पैसे की चकाचौंध में मनुष्य को अपना कर्त्तव्य पथ दिखाई नहीं पड़ता और वह रास्ता भूलकर कहीं से कहीं चला जाता है। लोहे को बार बार गरम करके तब कीमती औजार बनाये जाते हैं। हथियार तब तेज होते हैं, जब उन्हें पत्थर पर खूब घिसा जाता है। खरादपर चढ़े बिना हीरे में चमक नहीं आती। चुम्बक पत्थर को यदि रगड़ा न जाये, तो उसके अन्दर छिपी हुई अग्नि यों ही सुषुप्त अवस्था में पड़ी रहेगी। परमात्मा ने मनुष्य जाति को बहुत सी अमूल्य वस्तुएं दी हैं, इनमें सब से अधिक महत्वपूर्ण गरीबी, कठिनाई, आपत्ति और असुविधा हैं, क्योंकि इन्हीं के द्वारा मनुष्य को अपने सर्वोत्तम गुणों का विकास करने योग्य अवसर मिलता है। कदाचित् परमेश्वर हर एक व्यक्ति के सब काम आसान कर देता तो निश्चय ही आलसी होकर हम लोग कब के मिट गये होते।
यदि आपने बेईमानी करके लाखों रुपये की सम्पत्ति जमा कर ली तो क्या बड़ा काम कर लिया? दीन-दुखियों का रक्त चूस कर यदि अपना पेट बढ़ा लिया, तो यह क्या बड़ी सफलता हुई? आपके अमीर बनने से यदि दूसरे अनेक व्यक्ति दरिद्र बन रहे हों, आपके व्यापार से दूसरों के जीवन पतित हो रहे हों, अनेकों की सुख शान्ति नष्ट हो रही है, तो ऐसी अमीरी पर लानत है। स्मरण रखिये-एक दिन आपसे पूछा जायेगा कि-धन को कैसे पाया? और कैसे खर्च किया? स्मरण रखिये आपको एक दिन न्याय तुला पर तोला जायेगा और उस समय अपनी भूल पर पश्चाताप होगा, तब देखोगे कि आप उसके विपरीत निकले जैसा कि होना चाहिए था।
आप आश्चर्य करेंगे कि क्या बिना पैसा के भी कोई धनवान् हो सकता है? लेकिन सत्य समझिये इस संसार में ऐसे अनेक मनुष्य हैं जिनकी जेब में एक पैसा नहीं है या जिनकी जेब ही नहीं है, फिर भी वे धनवान् हैं और इतने बड़े धनवान कि उनकी समता दूसरा कोई नहीं कर सकता। जिसका शरीर स्वस्थ है, हृदय उदार है, और मन पवित्र है, यथार्थ में वही धनवान है। स्वस्थ शरीर चाँदी से कीमती है, उदार हृदय सोने से मूल्यवान है और पवित्र मन की कीमत रत्नों से अधिक है। लार्ड कालिंगवुड कहते थे -”दूसरों को धन के ऊपर मरने दो, मैं तो बिना पैसे का अमीर हूँ क्योंकि मैं जो कमाता हूँ नेकी से कमाता हूँ?” सिसरो ने कहा -”मेरे पास थोड़े से ईमानदारी के साथ कमाये हुए पैसे हैं, परन्तु वे मुझे करोड़पतियों से अधिक आनन्द देते हैं।”
दधीचि, विशिष्ट, व्यास, बाल्मीकि, तुलसीदास, सूरदास, रामदास, कबीर आदि बिना पैसे के अमीर थे, वे जानते थे कि मनुष्य का सब आवश्यक भोजन मुख द्वारा ही अन्दर नहीं जाता और न जीवन को आनन्दमय बनाने वाली वस्तुएं पैसे से खरीदी जा सकती हैं। ईश्वर ने जीवन रूपी पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर अमूल्य रहस्यों को अंकित कर रखा है, यदि हम चाहें तो उनको पहचान कर जीवन को प्रभावपूर्ण बना सकते हैं। एक विशाल हृदय और उच्च आत्मा वाला मनुष्य झोपड़ी में भी रत्नों की जगमगाहट पैदा करेगा। जो सदाचारी है और परोपकार में प्रवृत्त है, वह इस लोक में भी धनी है और परलोक में भी, भले ही उसके पास द्रव्य का अभाव हो। यदि आप विनयशील, प्रेमी, निस्वार्थ और पवित्र हैं, तो विश्वास कीजिए कि आप अनन्त धन के स्वामी हैं।
जिसके पास पैसा नहीं, वह गरीब कहा जायेगा, परन्तु जिसके पास केवल पैसा है, वह उससे भी अधिक कंगाल है। क्या आप सद्बुद्धि और सद्गुणों को धन नहीं मानते? अष्टावक्र आठ जगह से टेड़े थे और गरीब थे, पर जब जनक की सभा में जाकर अपने गुणों का परिचय दिया तो राजा उनका शिष्य हो गया। द्रोणाचार्य धृतराष्ट्र के राज दरबार में पहुँचे, तो उनके शरीर पर कपड़े भी न थे, पर उनके गुणों ने उन्हें राजकुमारों के गुरु का सम्मान पूर्ण पद दिलाया। महात्मा डियोंजनीज के पास जाकर दिग्विजयी सिकन्दर ने निवेदन किया -’महात्मा! आपके लिये क्या वस्तु उपस्थित करूं? उन्होंने उत्तर दिया-’मेरी धूप मत रोको और एक तरफ खड़े हो जाओ वह चीज मुझ से मत छीनों जो तुम मुझे नहीं दे सकते।” इस पर सिकन्दर ने कहा-’यदि मैं सिकन्दर न होता तो डयोजनीज़ ही होना पसन्द करता।’
गुरु गोविन्दसिंह, वीर हकीकतराय, छत्रपति शिवाजी, राजा प्रताप आदि ने धन के लिये अपना जीवन उर्त्सग नहीं किया था। माननीय गोखले से एक बार एक सम्पन्न व्यक्ति ने पूछा-आप इतने राजनीतिज्ञ होते हुए भी गरीबी का जीवन क्यों व्यतीत करते हैं? उन्होंने उत्तर दिया -’मेरे लिए यही बहुत है। पैसा जोड़ने के लिए जीवन जैसी महत्वपूर्ण वस्तु का अधिक भाग नष्ट करने में मुझे कुछ भी बुद्धिमत्ता प्रतीत नहीं होती।’
फ्रेंकलिन से एक बार उनका एक धनी मित्र यह पूछने गया कि-’मैं अपना धन कहाँ रखूँ?” उन्होंने उत्तर दिया कि-”तुम अपनी थैलियों को अपने सिर के अन्दर उलट लो, तो कोई भी उसे चुरा न सकेगा।”
तत्वज्ञों का कहना है कि हे ऐश्वर्य की इच्छा करने वालो! अपने तुच्छ स्वार्थों को सड़े और फटे पुराने कुर्ते की तरह उतार कर फेंक दो। प्रेम और पवित्रता के नवीन परिधान धारण कर लो। रोना, झीकना, घबराना, और निराश होना छोड़ो, विपुल संपदा आपके अन्दर भरी हुई है। धनवान बनना चाहते हो तो उसकी कुन्जी बाहर नहीं भीतर तलाश करो। धन और कुछ नहीं सद्गुणों का छोटा सा प्रदर्शन मात्र है। लालच, क्रोध, घृणा, द्वेष, छल और इन्द्रिय लिप्सा को छोड़ दो। प्रेम, पवित्रता, सज्जनता, नम्रता, दयालुता, धैर्य और प्रसन्नता से अपने मन को भर लो। बस, फिर दरिद्रता तुम्हारे द्वार से पलायन कर जायेगी। निर्बलता और दीनता के दर्शन भी न होंगे। भीतर से एक ऐसी अगम्य और सर्व विजयी शक्ति का आविर्भाव होगा जिसका विशाल वैभव दूर-दूर तक प्रकाशित होगा।