मानसिक शक्तियों के स्थान

December 1941

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(अखंड ज्योति कार्यालय से प्रकाशित ‘बुद्धि बढ़ाने के उपाय’ पुस्तक के कुछ पृष्ठ)

शव च्छेदन और प्रत्यक्ष शरीर विज्ञान द्वारा मस्तिष्क के सम्बन्ध में अभी बहुत कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकी है। मस्तिष्क की बनावट उसकी पेशियों और तन्तुओं की रचना के सम्बन्ध में डॉक्टर लोग कुछ ज्ञान रखते हैं, किन्तु वे अभी तक यह भी पता नहीं लगा सके कि श्वेत बालुका और भूरा पदार्थ (ग्रेट मैटर) और यह महत्वपूर्ण पदार्थ किस कार्य के लिये निर्मित है।

मानसिक शक्तियों का सूक्ष्म अन्वेषण करने वाले वैज्ञानिकों ने अपना कार्य स्थूल रचना तक ही सीमित न रख कर यह भी पता लगाया है, कि किन शक्तियों की सूक्ष्म सत्ता मस्तिष्क के किन भागों में रहती है और किस प्रकार उनके द्वारा-विभिन्न कार्य व्यापार संचालित किये जाते हैं।

नीचे के चित्र में मस्तिष्क की विभिन्न शक्तियों के स्थानों का निरूपण किया गया है। यों तो इससे भी अधिक सूक्ष्म शक्तियाँ होंगी, पर चिरकालीन खोज के पश्चात् जिन शक्तियों के स्थानों का निश्चित रूप से ज्ञान प्राप्त हो सका है, इसमें केवल उन्हीं का उल्लेख किया गया है।

चित्र के अनुसार पाठक शक्तियों का स्थान जान लेंगे। इसमें दाँई बाँई ओर का विभाजन नहीं है। यह दोनों ही ओर से समझी जा सकती है। एक सीध में एक ही शक्ति आर-पार चली गई है। वह बीच में टूट कर अधूरी नहीं रही है, जिससे कि दाँए बाँए ओर की भिन्नता की आशंका हो। यदि निर्धारित स्थान पर एक पिन चुभोई जाये और वह आर-पार हो जाये, तो उसके एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक का स्थान उसी एक शक्ति का होगा।

अब विभिन्न शक्तियों के व्यापारों पर कुछ प्रकाश डाला जाता हैः-

1. वाग व्यापार शक्ति-जिह्वा द्वारा इसी से बोलने, बात-चीत करने, गाने-बजाने की क्रियायें होती हैं। 2. रूप ग्रहण शक्ति-नेत्रों द्वारा यही शक्ति रंग, रूप का अनुभव करती है। 3. ग्रहण शक्ति-छोटे, बड़े लम्बे, चौड़े, ऊंचे-नीचे का बोध इससे होता है। 4. गुरुता ग्रहण शक्ति-भारी हलके का ज्ञान इसी से होता है। 5. व्यवस्था ग्रहण शक्ति-वस्तुओं की स्थिति का इससे निर्णय होता है। 6. वर्ण ग्रहण शक्ति-रंग और जाति की पहचान करती है। 7. संख्या ग्रहण शक्ति-संख्या का बोध कराती है। 10. अविभाव शक्ति-विरोधी भावनाएं। 11. वृत्तान्त ग्रहण शक्ति-किसी समाचार का क्रमबद्ध धारण कराती हैं। 12. स्थान ग्रहण शक्ति-स्थान के बारे में जानकारी होती है। 13. समय शक्ति-समय का भेद जानने वाली। 14. राग ग्रहण शक्ति-ध्वनि, नाद, संगीत का अनुभव कराने वाली। 15. रचना शक्ति-निर्माण करने, बनाने की योग्यता। 16. उपाजन शक्ति-भावों को उत्पन्न करने वाली। 17. पोषण शक्ति-उत्पन्न विचारों को पुष्ट करने वाली। 18. काव्य शक्ति-कवित्व योग्यता। 19. सुप्रतिक ग्रहण सत्ता-आदर्श निर्माण योग्यता। 20. आमोद शक्ति-प्रसन्नता, मनोरंजन का स्थान। 21. न्याय शक्ति-न्याय-अन्याय की बोधक है। 22. उपमान शक्ति-दो वस्तुओं की तुलना करने की योग्यता। 23. मनुष्यत्व शक्ति-इंसानियत, मानव धर्म की प्रोत्साहक। 24. नम्रता शक्ति-स्वभाव को मधुर विनयी बनाने वाली। 25. पक्रान्ति शक्ति-हृदय की उदारता। 26. अनुवर्तन शक्ति-नकल करने की शक्ति। 27. भक्ति शक्ति-श्रद्धा, भक्ति की उत्पादक। 28. आत्म-ज्ञान शक्ति-आध्यात्मिक विकास करने वाली 29. दाढ़र्य शक्ति-दृढ़ रहने की शक्ति। 30. आशा-शक्ति आशा को बढ़ाने वाली। 31. अंतः करण शुद्धि शक्ति-विचारों को निर्मल, पवित्र और उच्च कोटि के बनाने वाली। 32 रुचिकर शक्ति-किसी कार्य में दिलचस्पी, प्रेम उत्पन्न करने वाली। 33 सावधान शक्ति-होशियारी, जागृति की उत्पादक। 34. गोपन शक्ति-किसी बात को मन से छिपाये रहने की योग्यता। 35. विनाशात्मक शक्ति-नष्ट करने, तोड़ने, बिगाड़ने मारने की इच्छा। 36. अपरिच्छेद शक्ति-लगातार जुटे रहने की शक्ति। 37. निवासानुराग शक्ति-रहने के स्थान सम्बन्धी दिलचस्पी। 38. मैत्री शक्ति-दो प्राणियों के बीच मित्रता की उत्पादक। 39. पितृ प्रेम शक्ति-अपने पूर्वजों, संरक्षकों के प्रति अनुराग। 40. सम्मेलन शक्ति-मिलने जुलने बहुत आदमियों के बीच रहने का स्वभाव। 41. शौर्य शक्ति-बहादुरी, वीरता की जननी। 42. आम गौरव शक्ति-स्वाभिमान की योग्यता। 43. प्राण स्नेह शक्ति-अपने प्राणों का मोह। 44. छोटे और निर्बलों पर कृपा, वात्सल्य।

पाठक जान गये होंगे कि मस्तिष्क में किस प्रकार की योग्यता का स्थान कहाँ है।

जिस शक्ति को विकसित करना हो, उसके स्थान पर निम्न उपायों का प्रयोग करना चाहियेः-

1. शान्त चित्त से एकान्त स्थान में बैठकर मस्तिष्क के नियत भाग में चन्द्रमा के समान शीतल ज्योति का ध्यान किया कीजिये।

2. मस्तिष्क से नियत स्थान पर दाँये और बाँये दोनों ओर अनामिका, मध्यमा और तर्जनी उंगलियों के छोर रखकर इस प्रकार की दृढ़ भावना किया कीजिये। “इस स्थान पर स्थित अमुक शक्ति का विकास हो रहा है। वहाँ के कोप सतेज और सूक्ष्म होकर विशेष रूप से मेरा मस्तिष्क प्रतिक्षण परिपूर्ण होता जा रहा है।”

3. नियत स्थान पर जल की धारा छोड़नी चाहिये।

4. ब्राह्मी, आँवला या सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिये।

5. नियत स्थान पर नीले काँच द्वारा घृत के दीपक का प्रकाश पहुँचना चाहिये। इसके लिये एक लालटेन ऐसी बनवानी चाहिये, जो सब ओर से बन्द हो और सामने एक छोटासा गोल नीला काँच लगा हो। लालटेन के भीतर घृत का दीपक रखकर उसका प्रकाश दो फुट की दूरी से उस भाग पर पहुँचाना चाहिये।

(अपूर्ण)


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