(पं. सत्य नारायण्य जी पाण्डेय ‘सत्य’)
अधर में कम्पन आया मौन,
हुआ मुखरित स्वर में जग लीन।
सुनीए करुणा के दो शब्द
मिली है अब तंत्रों से बीन॥
बजंत्री ने छेड़ा आलाप,
तू बड़ी कुँडलिना में पीन।
बजान को जो मम स्थान
हृदय रस के चसके में लीन॥
कसे मन से भावों के तार,
बना मिजराब हमारा प्रेम।
आज योगी ने बीणा छेड़,
सुनाई तान निभाया नेम।
मिले स्वर गुँजित अनहद शब्द,
मीड़ में अनिल अनल का खेल।
विकंपित सारा स्वर संसार,
एक परदे में सबका मेल॥
वेद माँ ने झाँका चुपचाप
राग में देखा प्रिय का देश।
चेतना मचल उठी हो व्यस्त,
बदलने को निज स्वप्निल वेष॥