अपना तिरस्कार मत करो।

September 1940

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(महात्मा जेम्स ऐलन)

अपने आपको तुच्छ समझना ही आत्म पतन है। वास्तव में यह आत्महत्या का ही एक भेद है। जिस आदमी का इस प्रकार का विश्वास है कि उसके शुद्धाचार का महत्व गंदे वस्त्रों जितना है अर्थात् कुछ भी नहीं है, और वह कभी अपने प्रयत्नों से उन्नति नहीं कर सकता। ऐसा आदमी अपनी इस मनोवृत्ति से अपने आपको नपुँसक बना रहा है, अपनी आत्मा का गला घोंट रहा है। और अपने चरित्र की सर्वोच्च तथा परमोत्कृष्ट वस्तु की जड़ को काट रहा है एवं उसे तितर-बितर कर रहा है। आत्मतिरस्कार संबंधी प्रत्येक विचार व्यक्तित्व की शक्ति एवं जड़ को नष्ट करने वाला एक भयानक रोग है।

अपने आपको तुच्छ और नीच समझना बहुत हानिकारक है। इस प्रकार के विचार मानव समाज को उसकी शक्ति और वास्तविक बल से वंचित कर रहे हैं। ‘संसार झगड़ों का स्थान है’ अथवा ‘यह दुःखों का घर है’- इन विचारों के प्रभाव से मानव हृदयों की संसार के सौंदर्य को देखने की शक्ति नष्ट हो गई है। वास्तव में आदमी क्षुद्र जीव नहीं है। यदि वह परमात्मा पद को पाने का एक संकल्प करे, तो परमात्मा बन सकता है। वह अपने मन और शरीर का राजा है। वह अपने प्रत्येक वचन और प्रत्येक काम का नेता तथा पथ-प्रदर्शक है। जब कोई आदमी उपर्युक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तब समझना चाहिए कि उस आदमी ने अपने सच्चे आदर्श की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया है। वह अपने ध्येय की ओर चल पड़ा है।


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