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September 1940

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मनुष्य गलतियों से भरा हुआ है। सब में कुछ न कुछ दोष होते हैं। इसलिए दूसरों के दोषों पर ध्यान न देकर उनके गुणों को परखना चाहिए और आपस में मिल जुल कर एक दूसरे को सुधारने का उद्योग करते हुए प्रेम पूर्वक आगे बढ़ना चाहिए।

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जिसने ईश्वर को नहीं पहचाना उसने कुछ नहीं जाना। जिसने ईश्वर को जान लिया उसने इस संसार की जानने योग्य संपूर्ण वस्तुओं को जान लिया।

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दूसरों के सद्व्यवहार और सत्कार से तुम्हें कितनी हार्दिक प्रसन्नता होती है। यदि तुम भी वैसा ही सद्व्यवहार और सत्कार दूसरों के साथ करो तो दुनिया तुमसे भी संतुष्ट रहेगी।

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लोगों का एक दुख मिटता है तो दूसरा उन्हें आ घेरता है। सदैव कोई न कोई भय बाधा उन्हें सताती रहती है। कारण यह है कि आनन्द के मूल स्त्रोत को उन्होंने छोड़ दिया है।


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