(श्री गिरजा देवी 'निर्लिप्त' लखनऊ)
प्रिय, तनिक परदा उठा दो!
ढूँढ़ता नभ में तुम्हीं को श्याम जल धर रो पड़ा है।
आज आशा दीप मेरा कुछ मलिन सा हो चला है॥
प्रिय, नई ज्योति जगा दो!
खोजते तुमको थकी आंखें अलस क्या मूँद सो लूँ?
स्वप्न के संसार में प्यासे दृगों के द्वार खोलूँ?
प्रिय, सलोनी छवि दिखा दो!
बस अकेले तुमको देखूँ आप अपने को न लेखूँ।
‘तुम’ बनूँ ‘मैं’ और अपने में तुम्हारा रूप देखूँ॥
प्रिय, खुदी मेरी मिटा दो!
प्रिय, तनिक परदा उठा दो!!