(ले. कुँवर अमर सिंह जी)
बहुत सी वस्तुयें जो सूक्ष्मता, दूरी इत्यादि के कारण प्रतीत नहीं होती और उनकी सत्ता को सब मनुष्य मानते हैं, जैसे- बुद्धि, आत्मा, दुःख, सुख इत्यादि। इससे सिद्ध है कि संसार में ऐसी वस्तुयें विद्यमान हैं, जिनको मनुष्य इन्द्रियों से नहीं जान सकते। उनमें से एक ईश्वर है और यह प्रश्न कि ईश्वर कहाँ है बिल्कुल अशुद्ध है; क्योंकि कहाँ का शब्द स्थानीय के लिए आता है और वेद में ईश्वर को सर्वव्यापी बताया है। जैसे कोई कहे कि दूध में घी, या मिश्री में मिठास कहाँ है? तो उत्तर होगा सर्वत्र। कहाँ स्थानीय वस्तु के लिये प्रतीत होता है सर्वव्यापी के लिये नहीं।
जो परमात्मा को जानने के लिये इधर-उधर दौड़ते हैं, वह परमात्मा को कदापि नहीं पा सकते ईश्वर का सबसे निकटवर्ती स्थान अपने अन्दर है। क्योंकि हमारा आपा हमसे सब वस्तुओं की अपेक्षा निकट है। दुर्वासना, तृष्णा और लोक भक्षी भूख का धुँआ हमारे भीतर घुमड़ता रहता है। उसका विषैला प्रभाव दिव्य नेत्रों को खुलने नहीं देता इसलिये हमें परमात्मा के दर्शन नहीं होते। यदि हृदय को वासना रहित और निर्मल बना लिया जाये तो अपने रोम-रोम में परमात्मा तत्व की झंकार सुनी जा सकती है।
परमात्मा ने जीवात्मा को मन इत्यादि पर राज्य दिया है। और यह सब इन्द्रिय मन और शरीर आत्मा को नियत स्थान (मोक्ष) तक पहुँचाने के लिये साधन दिये हैं। अतएव जो मनुष्य आत्मा को इस स्थान से गिराकर अर्थात् बुरे कर्मों में लिप्त करने से मन इन्द्रिय और शरीर का दास बना देते हैं वह सचमुच आत्मा का नाश करते हैं।
रजकण-