मैं परलोकवादी कैसे बना

September 1940

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(लेखक श्री वी.डी. ऋषि, बम्बई)

अपनी स्वर्गस्थ स्त्री के अंत्येष्टि तथा अन्य संस्कार कर मैं इस विषय की खोज में लगा। मेरा अनुमान था, कि मुझे अपने इस उद्देश्य की सिद्धि में थियोसोफिष्टों से सहायता मिलेगी। इसके लिये मैंने एक पत्र श्रीमती एनी बीसेण्ट को लिखा। मेरे पत्र के उत्तर में श्रीमती एनी बीसेण्ट ने मेरे प्रति पूर्ण सम्वेदना प्रकट करते हुए लिखा। “आपकी पत्नी परलोक में होंगी और पारस्परिक प्रेमाकर्षण के कारण आपसे वह निद्रित अवस्था में मिली होंगी। आप यदि उसके लिये कोई प्रयत्न करें तो आप से उसकी भेंट हो सकती है।” श्रीमती एनी बीसेण्ट के इस पत्र से मेरी जिज्ञासा और भी बढ़ी, किन्तु उन के अनिश्चित उत्तर से मुझे सन्तोष नहीं हुआ। इसलिये मैंने उन्हें फिर पत्र लिखा। किन्तु उनका जो उत्तर आया उससे मेरा उत्साह नहीं बढ़ा। मैंने आस्ट्रेलिया निवासी मि. लीड विटर को एक पत्र लिखा। उनके उत्तर से मुझे मालूम हुआ कि मेरे शोक करने से यह वहाँ दुखी रहती है। वहाँ संदेश उसके पास जाय इसके लिए उसकी अनुमति नहीं थी। मि. लीड विटर का इस आशय का पत्र पढ़कर मेरा सन्तोष नहीं हुआ। उन्होंने अपने पत्र में मुझे श्री वाडिया का नाम लिख भेजा था। मैंने श्री वाडिया को अपनी पत्नी का चित्र और एक पत्र भेजा। पत्र और फोटो भेजे हुए 4 वर्ष हो गये थे, किन्तु उनकी ओर से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। इस बीच में मैं अपने उद्योग में किंचित् भी शिथिल नहीं हुआ और मैंने अपना उद्योग जारी रखा। अन्त में मुझे मालूम हुआ कि इंग्लैंड के ‘अन्तर्राष्ट्रीय होम सरकिल फेडरेशन’ के प्रेसीडेण्ट मि. बुश से मुझे इस कार्य में सहायता मिलेगी। यह मालूम होते ही मैंने उन्हें तुरन्त एक पत्र लिखा। मेरे पत्र के उत्तर में उन्होंने जो कुछ लिखा और उन्होंने मुझे पत्र द्वारा जो साधन बताये थे, उनसे मुझे थोड़ी-थोड़ी सफलता प्राप्त हुई। मि. बुश ने मुझे एक मीडियम का नाम भी लिख भेजा था और साइकोमैट्री कर उन्होंने मेरी पत्नी के विषय में अनेक बातें लिखी थीं। उन्होंने मुझे यह भी लिखा था कि यदि मैं अपने हाथ से एक पत्र लिखकर तथा अपनी स्वर्गस्थ स्त्री की कोई वस्तु भी मीडियम के पास भेज दूँ तो पत्नी के विषय में मुझे बहुत कुछ मालूम हो सकता है।

पाठक यह जानना चाहेंगे कि यह ‘साइकोमैट्री’ क्या बला है? इससे क्या हो सकता है? इस संबंध में इतना बताना आवश्यक है कि मनुष्य के समीप रहने वाली प्रत्येक वस्तु पर उसके आचार-विचार का अवश्य संस्कार पड़ता है। यह संस्कार सूक्ष्म शक्ति युक्त मनुष्य मालूम कर सकते हैं। इसलिए यदि किसी मृत व्यक्ति की कोई वस्तु मीडियम के पास भेज दी जाये तो मीडियम स्वर्गस्थ प्राणी के सम्बन्ध में बहुत कुछ आश्चर्यजनक बातें कह सकता है। मैंने भी मि. बुश के आदेशानुसार अपनी स्वर्गस्थ स्त्री के पैर का छल्ला मीडियम के पास भेज दिया। उसके भेजने के बाद मेरी स्त्री के सम्बन्ध में कितनी ही आश्चर्यजनक बातें मुझे बताई गई। यद्यपि वे सब बातें सत्य तो नहीं थी किन्तु जितनी बातें सत्य थीं, वे भी ऐसे ही नहीं थीं, कि जिन्हें कोई पहले से ही जान सके। यहाँ यह भी बता देना आवश्यक है कि वह मीडियम भारत का रहने वाला नहीं था, किन्तु इंग्लैंड में रहने वाली अंग्रेज महिला थी। इनका नाम जानसेज रावर्टसन था। उन्होंने छल्ला बनाने वाले सुनार तक का हाल मेरे पास लिखकर भेज दिया मेरी स्त्री का स्वभाव, उसकी बीमारी और उसकी दिनचर्या के सम्बन्ध में उन्होंने जो बातें लिखी थीं, उनमें से अधिकाँश सत्य थीं।

मीडियम इस आभूषण को हाथ में लेकर जिन बातों को बता सकता है, उसका वर्णन हम आगे बतायेंगे। इसके साथ ही यह बात भी समझ लेना चाहिये, कि मीडियम जो वस्तु हाथ में लेता है उस के मालिक के संस्कारों को वह अनुभव कर सकता है। मीडियम ने मुझे लिखा “चाँदी का छल्ला हाथ में लेने से मुझे गरमी मालूम हुई। मेरी पीठ में जलन होने लगी। कन्धों में दर्द होने लगा और पेट के अन्दर भी दर्द हो रहा था। यहाँ तक कि मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।” मीडियम को यह अनुभव मेरी स्वर्गस्थ स्त्री की बीमारी के होंगे। इसमें पेट के दाहिनी ओर दर्द होना विशेष महत्व का है। आगे उन्होंने लिखा, “वह अपना काम नियमित रूप से करती होंगी। सब चीजों को साफ स्वच्छ रखने की इनमें आदत पड़ गई होगी। कोई काम ऐसे-वैसे ही करना उन्हें पसन्द नहीं होगा” मीडियम का यह वर्णन उनके स्वभाव का वर्णन करने वाला है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उनके आचरण के सम्बन्ध में लिखा, ‘कला वस्त्र पहने हुये माला फेरती हुई वह दिखती हैं।’ मेरी स्व. स्त्री नित्य भगवान के नाम की माला फेरा करती थी। यह उसका एक नियम था। आगे मीडियम ने उनकी मन की स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा- ‘यह थकी हुई हाथ फैला रही है। मालूम होता है।’ बहुत पीड़ा ग्रस्त है। पीड़ा सहन करने में यह करुणा की साक्षात मूर्ति मालूम होती है बहुत समय तक बीमार रहने के कारण ऐसा हो जाना संभव था। एक समय का वर्णन मीडियम ने जो निम्नलिखित किया है “आज प्रातःकाल मुझे ऐसा जान पड़ा कि संदेश देने वाली कोई स्त्री है। मुझे कुछ दिखता तो नहीं था, किन्तु ऐसा प्रतीत होता था, कि वह मुझसे यह कह रही थी कि समय का विचार मत करो, यदि विलंब हो जाये तो शाँति रखना चाहिए। अधीर मत होओ मैं आपकी बहुत सहायता करूंगी।” इस प्रकार के कुछ संदेश मेरी स्त्री ने स्वयं लेखन से मुझे दिये थे, यह बात भी मीडियम को उन्होंने कही थी। मेरी स्त्री के स्वरूप के सम्बन्ध में उक्त मीडियम ने लिखा था- “मुझे एक श्याम रंग की स्त्री जान पड़ती है। और उसकी आँखें बड़ी चमकीली और भवें सुन्दर और काले रंग की हैं। इसका कपाल गोल है और शरीर कोमल और ताम्र वर्ण का है। यह काले रंग की नहीं दिखती थी इनका मुँह जरा बड़ा है। यह कुछ लम्बी हैं। चेहरे पर युवावस्था जान पड़ती है। इन्होंने सुन्दर कपड़े पहने हैं। मालूम होता है कि यह अपना हाल बता रही हैं। मैं इनका वर्णन इस प्रकार कर सकती हूँ। यह सुन्दर है, जीवनकाल में इनका वर्ण ताम्र वर्ण का रहा होगा। यह मुझे चित्ताकर्षक जान पड़ती हैं। यह कहती हैं, “प्रेम अटूट है और यह हृदय का बन्धन होता है।” मेरी स्वर्गस्थ स्त्री का फोटो देखने से इस कथन की सत्यता प्रकट हो जायेगी। शरीर का वर्ण मीडियम के बताये हुए रंग का था। इस प्रकार का वर्णन कोई यों ही कर सकता है, यह असंभव है।

(क्रमशः)


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