विपत्ति में पड़ने पर और प्रलोभन सामने आने पर ही मनुष्य की सच्ची परीक्षा होती है। जो इन परीक्षाओं में धर्म से नहीं डिगता, समझना चाहिए वह देवत्व के निकट पहुँच गया है।
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संसार के एक विनम्र सेवक बनने का प्रयत्न करोगे तो सुखपूर्वक रहोगे। मालिक बनने और हुकूमत चलाने की इच्छा करोगे तो बहुत क्लेश उठाओगे और अन्त में निराश हो उठोगे।