(लेखक- पं. भोजराज जी शुक्ल, ऐत्मादपुर)
संसार में दीर्घजीवी होना सभी चाहते हैं, सबकी इच्छा रहती है हम अधिक दिन तक जीवित रहें। इस लेख में कुछ ऐसे ही उपाय बताये जावेंगे जिनके नियम पूर्वक साधनों से मनुष्य अपनी आयु बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक प्राणी के दीर्घ जीवन और उसकी आयु का समय उसके श्वासों पर निर्भर है। उसके प्रारब्धानुसार उसे श्वास प्रदान किये जाते हैं अर्थात् यह शरीर जितने श्वास लेकर समाप्त हो जायगा परमात्मा के दिये हुए श्वासों में व्यय कर देगा उसकी आयु उतनी ही बढ़-घट जायगी, साधारणतः प्रत्येक मनुष्य के दिन रात में 21600 श्वास चलते हैं, यदि कोई मनुष्य 21600 से कम श्वास चलाता है तो उसकी आयु का समय बढ़ जाता है यदि अपनी असावधानी से श्वास अधिक व्यय कर देता है तो उसकी आयु का काल घट जाता है साराँश यह है कि मनुष्य इस कार्य में स्वतन्त्र है कि ईश्वर दत्त श्वासों के कोष को चाहे जितनी शीघ्रता से लुटा दे या कंजूसी (कृपणता) से कम खर्च करें, जैसी कि श्वासों के विषय में कहावत प्रसिद्ध है।
बैठे बारह चले अठारह, सोबत चाले तीस।
विषय करत में छत्तीस चालें क्यों जीवे जगदीश॥
इसी कारण भजनानन्दी तथा योगियों की आयु अधिक होती है, अधिक सोने वाले और विषय लम्पट पुरुषों की आयु कम होती है वह अपनी जीवन यात्रा शीघ्र समाप्त कर देते हैं मैं नीचे एक तालिका देता हूँ जिससे आपको विदित हो जायगा कि जो प्राणी जितनी शीघ्र-शीघ्र श्वास लेता है उतनी आयु कम होती है।
प्राणी श्वास की गति प्रति मिनट, पूर्ण आयु
खरगोश...............38 बार..............8 वर्ष तक
बन्दर...............32 बार..............10 वर्ष तक
कुत्ता...............29 बार..............12 वर्ष तक
घोड़ा...............19 बार..............25 वर्ष तक
मनुष्य..............13 बार..............120 वर्ष तक
साँप............... 08 बार..............1000 वर्ष तक
कछुआ.............05 बार..............2000 वर्ष तक
कोई महाशय इसका यह अर्थ न लगा बैठे कि बैठे रहने में सबसे कम श्वास चलता है अतएव आलसी बन कर चुपचाप बैठे रहें इससे आयु बढ़ जायगी आपको जीवन निर्वाह के लिए साँसारिक सब ही कार्य करने पड़ेंगे आप सब कार्यों को नियमित रूप से करते रहिये। यदि आप अपने सामर्थ्य से अधिक परिश्रम करेंगे तो अवश्य रोग ग्रस्त हो जायेंगे जिन लोगों के दौड़ धूप के कामों में श्वास अधिक व्यय हो जाते हों उनको विषय भोग कम करके कुछ प्राणायाम करना चाहिए अथवा शीर्षासन करके उस कमी को पूरा कर लेना चाहिए (शीर्षासन में कुम्भक होने से श्वास कम चलता है यदि बैठे रहने के सिवाय आपको कुछ काम नहीं हैं तो परमात्मा का भजन करो और यथा शक्ति श्वास कुंभक करते रहो इससे आपका स्वास्थ्य ठीक रह कर लोक-परलोक का आनन्द प्राप्त होगा।)
चीन देश के पेकिन नगर में एक बुड्ढा 250 वर्ष का है उससे लोगों ने पूछा कि आप दीर्घजीवी कैसे हुए, उत्तर दिया कि मैंने अपने जीवन में 3 बातों का ध्यान रक्खा है। 1- श्वास पूरी नाभि तक लिया जाय, शीघ्रता से अधूरा श्वास कभी नहीं लिया जाय। 2- अपने मेरुदण्ड (रीढ़) को सदैव सीधा रक्खा कभी झुक कर नहीं बैठा। 3- अपने दिमाग को गर्म नहीं होने दिया, अर्थात् कभी क्रोध नहीं किया। वास्तव में उपरोक्त तीनों नियम योग विद्या सम्बन्ध आयु वृद्धि कर्त्ता है। 1- पूरा श्वास लेने से कुम्भक हो ही जाता है जिससे श्वास की गति न्यून हो जाती है। 2- मेरु दण्ड को सीधा रखने से उसके भीतर का एक तरल पदार्थ अपनी ठीक स्थिति में रहा आता है उस तरल पदार्थ के अन्दर जो सुषुम्ना नाड़ी सूक्ष्म रूप से रहती है। वह निर्बल नहीं होने पाती इससे मस्तिष्क पुष्ट रहता है तथा आयु बढ़ती है। 3- क्रोध करने से श्वास की गति तीव्र हो जाती है श्वास अधिक चल जाते हैं।
प्राणियों के दिन-रात जो श्वास चलते हैं उन्हीं का नाम प्राण है जब प्राण बाहर निकल कर फिर शरीर के भीतर नहीं जाता तब उसे मृत्यु कहते हैं। श्वास का स्वाभाविक नियम है जब वह बाहर निकलता है तो 12 अंगुल लम्बा जाता है जब भीतर को घुसता है तो उसकी लम्बाई 10 अंगुल होती है अर्थात् आमदनी से खर्च अधिक रहता है इसी कारण दिवाला निकल जाता है फिर दुकान उठ जाती है, यही मृत्यु है।
प्राणायाम द्वारा आप अपनी श्वास की इस गति को न्यून करके अपनी आयु बढ़ा सकते हैं। मनुष्य की स्वाभाविक श्वास की गति 12 अंगुल है। परन्तु गाने में 16 अंगुल, भोजन करते समय 20 अंगुल, चलने में 24 अंगुल, सोते समय 40 अंगुल सोते में 30 अंगुल और स्त्री संसर्ग में 36 अंगुल लम्बा श्वास चल जाता है। अधिक परिश्रम (साहस) के कामों में तथा ज्वर इत्यादि रोगों में इससे भी अधिक लम्बा श्वास चलने लगता है। राजयक्ष्मा (तपेदिक) के रोगियों का प्रायः 80 अंगुल तक लम्बा श्वास जाता है।
श्वास के नापने की सहज क्रिया यह है कि 12 अंगुल लम्बी एक सींक लेकर उसके एक सिरे पर जरा सी घुनी हुई साफ रुई लगा दो, दूसरा सिरा सींक का अपने नथुने से लगा कर देखो कि रुई हिल रही है। जहाँ तक रुई हिलती जान पड़े सींक को नाक के आगे बढ़ाते जाओ जहाँ रुई का हिलना बन्द हो जावे बस इतनी ही लम्बी श्वास की गति समझ लो, इसी प्रकार यदि 12 अंगुल पर रुई नहीं हिलती है तो सींक की लम्बाई कम करके देखा कि कितने अंगुल तक श्वास जाता है। श्वास की लम्बाई जितनी अधिक होगी समझलो उतना ही जीवन का ह्रास शीघ्रता से हो रहा है, जितनी श्वास कम लम्बी हो जान लो मृत्यु अभी दूर है।
प्राणायाम के अभ्यास से श्वास की गति न्यून हो सकती है योगियों का श्वास तो बाहर निकलती ही नहीं नाक ही में चलता रहता है। कोई-कोई गृहस्थ मनुष्य प्राणायाम के नाम से डरते हैं कहते हैं कि ‘देखा देखी साधो जोग, छीजी काया बाढ़ौ रोग‘ उनका यह कथन किसी दशा में सत्य तथा किसी दशा में असत्य है। यह समझ का फेर है कि उन्होंने एक ही बात पर विश्वास कर लिया क्योंकि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ अधिकता सब जगह निषेध है। जब आप श्वास के रोकने में अति हठ करेंगे तो अवश्य ही दमा इत्यादि रोगों से ग्रसित हो जायेंगे, यदि श्वास को नियमपूर्वक अपनी सामर्थ्य के अनुसार रोकेंगे अवश्य लाभ उठावेंगे। जब मनुष्य अपनी शक्ति से अधिक व्यायाम, भोजन, मैथुन इत्यादि करता है अथवा मस्तिष्क का कोई कार्य करता है तो वह रोगी अथवा पागल हो जाता है। अतएव प्राणायाम भी अपनी शक्ति से अधिक करना रोग को मोल लेना है। प्राणायाम के विषय में फिर कभी लिखूँगा, इस समय केवल इतना ही लिखना पर्याप्त समझता हूँ, श्वास के भीतर ले जाने को पूरक, बाहर निकालने को रेचक तथा स्थिर को कुम्भक कहते हैं। स्वच्छ वायु तथा एकान्त स्थान में पूरक करके यथाशक्ति कुम्भक करने से, इसी प्रकार रेचक करके कुम्भक करने से, श्वास की गति न्यून हो जाती है और आयु बढ़ती है, इस क्रिया को न्यून से न्यून दिन में 3 बार अवश्य करना चाहिये, इसका अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिये रेचक करते समय प्राण वायु को इतनी मन्दगति से निकालना चाहिये कि हथेली पर रक्खी हुई धुनी रुई का जरा सा टुकड़ा भी न उड़ सके, कुछ देर तक कुम्भक करने से स्वास्थ्य को वह लाभ पहुँचता है जितना कि पौष्टिक औषधि से नहीं पहुँच सकता यदि भोजन, निद्रा, स्त्री संसर्ग कम और नियमित रूप से किया जायेगा तो श्वास कम चलने से आयु में अवश्य वृद्धि होगी।
दर्शन शास्त्र वेत्ताओं का कथन है कि काम, क्रोध, चिन्ता तथा दुराशा ही असमय मृत्यु के कारण हैं। जितनी आयु तक जिस प्राणी का अखण्ड ब्रह्मचर्य रहेगा। शेष जीवन नियम पूर्वक व्यतीत करने से उसे ब्रह्मचर्य अवस्था से चौगुनी आयु मिलेगी। कई विद्वानों का लेख है कि भारतवर्ष के ब्राह्मण तथा प्राचीन अरब निवासी ब्राजील के निवासी 200 या 300 वर्ष तक जीते थे प्रोफेसर ह्यू फलेण्ड का कथन है कि जो प्राणी अधिक अवस्था में युवा होगा वह अधिक जीवित रहेगा, डॉक्टर एलन्स्टन लिखते हैं कि प्रायः जन्तु उससे छह गुना जीते हैं जितनी देर उनको युवा होने में लगती है।
इन सब बातों के अतिरिक्त मनुष्य को भोजन करने में ग्रास को 50 बार चबा कर निगलना चाहिये मैंने स्वयं परीक्षा की है कि गाय, भैंस 42 बार जुगाली करते हैं। खूब चबा के पात्र भर अन्न खाने से उतना ही रक्त माँस बनेगा जितना आधा सेर अन्न शीघ्रता से खाकर बनता है। सतोगुणी भोजन सदैव स्वास्थ्य तथा आयु वर्द्धक होता है। जैसा प्राण और शरीर का साथ है वैसा ही आयु और स्वास्थ्य का साथ है अतएव आयु वृद्धि चाहने वाले को स्वास्थ्य का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। स्वास्थ्य के उपाय पाठकों ने अनेक पुस्तकों में पढ़े होंगे इस समय उनका लिखना आवश्यक नहीं पर इस कहावत पर ध्यान रखना जरूरी है।
“खाय के मूतै सौवें बाम।
काहे को वैद्य बसावै गाम॥”
भोजन करके तुरन्त ही मूत्र त्याग करना चाहिये, इससे दर्द गुर्दा की बीमारी कभी नहीं होने पावेगी। रात्रि को बाँयी करवट सोने से सीधा (दाहिना) स्वर चलेगा, हर एक मनुष्य का दिन में बाँया और रात्रि में दायाँ स्वर चलना चाहिये इससे मनुष्य निरोग तथा दीर्घजीवी होता है। इसके विपरीत स्वर चलने से वह रोगों तथा शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है। यहाँ पर स्वर विषय से सिर्फ इतना ही इशारा काफी है, इस विषय में फिर कभी लिखूँगा हाँ, एक प्रयोग लिख देने की और आवश्यकता समझता हूँ यानी “प्रातःकाल नाक से जल पीना।”
विगत घन निशीथे, प्रातरुत्थाय नित्यम्।
पिवति खलु नरोगी, घ्राणरन्ध्रेण वारि॥
सभवति मति पूर्णश्चक्षुषः ताक्ष्य तुल्यो।
वलिपलित विहीन सर्वं रोगैर्विमुक्तः॥
जिस समय बादल और रात्रि का अन्धकार न रहे, तब प्रातःकाल में उठकर जो मनुष्य निश्चय नाक के छिद्रों से जल पीता है, वह मतिपूर्ण (बुद्धिमान) गरुड़ के समान नेत्र वाला होता है शरीर में वलि (झुर्री) नहीं पड़ती, बाल सफेद नहीं होते, सब रोग से रहित होता है।
जो मनुष्य अपने प्राण वायु को कुम्भक करके अपने शरीर में भ्रमण कराता है वह अमृत पान करने का लाभ उठाता है, अवश्य स्वास्थ्य तथा दीर्घजीवी होता है।
कहानी-