अल्पायु से ही पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने प्रवेश किया। सन् 1927 से 1928 में श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल के ‘सैनिक’ अखबार में सक्रिय सहयोग देने लगे। पत्र के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के त्याग, बलिदान एवं सत्याग्रह का प्रचार-प्रसार होता था। ‘मत्त प्रलाप’ स्तंभ से छपे अपने लेखों तथा गीतों द्वारा परमपूज्य गुरुदेव ज्वाला भड़काने का काम करते थे। राजनीतिक गुरु महात्मा गांधी का मार्गदर्शन लेने साबरमती आश्रम की कई बार यात्रा की। रवींद्रनाथ ठाकुर, आचार्य विनोबा भावे, महर्षि अरविंद, श्री बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, बाबू गुलाब राय एम.ए., श्री बी.वी. केसकर, श्री कृष्णदत्त पालीवाल आदि मूर्द्धन्य व्यक्तियों का भी सान्निध्य मिलता रहा। परम पूज्य गुरुदेव का संकल्प तो स्वतंत्र भारत को नई दिशा देने का था।
पूज्य गुरुदेव ने स्वतंत्रता आंदोलन के बाद से ही वैदिक साहित्य, आर्ष साहित्य को अपने मूल रूप में सरल हिंदी टीका सहित प्रस्तुत करने की भूमिका मन में बना ली थी। उनकी मार्गदर्शक सत्ता द्वारा उन्हें सौंपे गए अनेक भागीरथी कार्यों में से एक कार्य आर्ष साहित्य को जन-सुलभ कराना भी था। अध्ययन और सामग्री संकलन का कार्य इसी कारण उन्होंने सन् 1936-37 से ही प्रारंभ कर दिया था।