सन् 1923 में परमपूज्य गुरुदेव की सहयोगिनी स्नेह-सलिला, परम वंदनीया, शक्तिस्वरूपा, सजल श्रद्धारूपा, वात्सल्यमयी मां, कितने ही नामों से जन-जन तक परिचित माता भगवती देवी शर्मा का जन्म भी 20 सितंबर 1926 को श्री जशवंतराय के घर चौथी संतान के रूप में हुआ। जन्म के समय ही द्रष्टा, भविष्यवक्ताओं ने बताया कि एक दैवी सत्ता, शक्ति रूप में उनके घर आई है। साधारण से असाधारण बनती हुई यह ऐसे उत्कर्ष को प्राप्त होगी कि करोड़ों व्यक्तियों की श्रद्धा का पात्र बनेगी, हजारों-लाखों व्यक्ति इस अन्नपूर्णा के द्वार पर भोजन करेंगे व कोई भी कभी भी इसका आशीर्वाद न पा लेगा, तो वह खाली नहीं जाएगा।
आंवलखेड़ा में माताजी का निवास अधिक दिनों तक नहीं रह सका। वंदनीया माताजी का पति की समस्त योजनाओं और क्रिया-कलापों में पूर्ण योगदान रहा। नारी-जागरण कार्यक्रम का वंदनीया माताजी द्वारा सफल संचालन किया गया। जैसा पति का जीवन, वैसा ही अपना जीवन, जहां उनका समर्पण, उसी के प्रति अपना भी समर्पण, यही संकल्प लेकर वे जुट गईं, कंधे से कंधा मिलाकर पूर्व जन्मों के अपने आराध्य-इष्ट के साथ। सन् 1941 से सन् 1971 तक समय ऋषियुग्म का गायत्री तपोभूमि व अखण्ड ज्योति संस्थान में सक्रिय रहने का समय रहा है।