जो भी पूज्य गुरुदेव के पास आया, वे उसे जीभर अनुदान देते रहे, कभी निराश नहीं लौटाया। कुछ गिने-चुने अमिट प्रारब्ध ग्रस्तों को छोड़कर प्रायः उन सभी की उन्होंने भरपूर सहायता की, जो तनिक से सहयोग या अनुदान पाने की इच्छा से उनके पास आया। सदैव यह कहा कि हमारे पास कुछ नहीं, हम अपनी मां से मांगेंगे व जो भी मदद संभव होगी, करेंगे। कभी यह नहीं कहा कि हम यह करेंगे। यह उनकी सबसे बड़ी महानता थी। प्रत्यक्ष सिद्धियों की चर्चा करने वाले को यह समझ पाना मुश्किल है कि उनकी अगणित सिद्धियों, विभूतियों में एक यह भी थी कि वह जिसे चाहते, अपना बना लेते थे। विकसित संवेदनशीलता, सहज औदार्य की वृत्ति कहें या जन्मजात संस्कार कहें अथवा 24 महापुरश्चरणों की सिद्धि उसके कारण रहे।
अब तक प्रायः 50 से अधिक शोध प्रबंध पूज्यवर के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विभिन्न विश्वविद्यालयों से प्रस्तुत किए जा चुके हैं और आगे भी होते रहेंगे।