अपना शरीर गायत्री जयंती 2 जून को छोड़ने की घोषणा वे पूर्व से ही परम वंदनीया माताजी के समक्ष कर गए थे। इस अवधि में परम वंदनीया माताजी ने अपने पर पूरा संतुलन रख, 2 जून को अपने आराध्य के महाप्रयाण के बाद करोड़ों बच्चों को हिम्मत बंधाकर 1, 2, 3, 4 अक्टूबर सन् 1990 शरद पूर्णिमा के संकल्प श्रद्धांजलि समारोह में उपस्थित 25 लाख परिजनों के माध्यम से जन-जन को आश्वस्त कर दिया कि यह दैवी शक्ति द्वारा संचालित मिशन आगे ही आगे बढ़ता चला जाएगा। देव स्थापना का क्रम चलाकर लाखों घरों में आद्य शक्ति गायत्री माता को स्थापित कराया गया।
इसके बाद सन् 1992 में 6 से 8 जून के बीच शांतिकुंज में विराट शपथ समारोह का आयोजन कर देवसंस्कृति का विस्तार करने के लिए लाखों लोगों को संकल्प दिलाया। 1992 में ही वंदनीया माताजी द्वारा अश्वमेध यज्ञों की शृंखला की घोषणा की गई। उनके द्वारा प्रारंभ कराई गई अश्वमेध शृंखला का पहला यज्ञ 8 से 10 नवंबर 1992 को जयपुर में हुआ। इस प्रकार 18 अश्वमेध माताजी के मार्गदर्शन में ही संपन्न हुए। इस आश्वमेधिक पुरुषार्थ ने वातावरण परिशोधन, सूक्ष्म जगत के नव निर्माण एवं सांस्कृतिक, वैचारिक क्रांति के नए आयाम प्रस्तुत किए। जन-जन में गायत्री और यज्ञ की चेतना का विस्तार किया।
क्या कुछ नहीं समाया था, वंदनीया माताजी के व्यक्तित्व में। आदर्श गृहणी, वात्सल्यमयी मां, उत्कट तपस्विनी, आध्यात्मिक शक्तियों की दिव्य स्रोत, ओजस्वी वक्ता एवं कुशल व्यवस्थापिका आदि न जाने कितने रूपों में वह अपना प्रकाश बांटती-बिखेरती रहीं। उनके जिस रूप को जिसने देखा, मुग्ध होकर देखता ही रह गया। जिनके हाथ में देश और समाज ने अपनी बागडोर सौंपी है, वे सब भी माताजी के सामाजिक-सांस्कृतिक अनुदानों की चर्चा करते नहीं थकते।