ऋषि युग्म का परिचय

माता जी की महानता

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अपने अज्ञातवास से पूर्व ही परम पूज्य गुरुदेव ने ‘अखण्ड ज्योति’ का सारा उत्तरदायित्व परम वंदनीया माता जी को सौंप दिया था। उसका संचालन और संपादन वे अंतिम समय तक करती रहीं। परम पूज्य गुरुदेव को फिर अपनी साधना में लौटना था, इस कारण संपादन संबंधी परिवर्तन गुरुदेव ने किया, जिसमें माता जी का पूर्ण सहयोग मिला।

माताजी को आगंतुकों का आतिथ्य करने में कभी परेशानी नहीं दिखाई दी, उलटे दूने आनंद का अनुभव होता था। आने वालों के लिए भोजन की व्यवस्था ऐसी थी कि कभी कोई माताजी के भोजनालय से भूखा नहीं गया, न भूखा सोया। माताजी के भावभरे सत्कार एवं परामर्श से निहाल होकर, उनका होकर ही गया। ऋषियुग्म का जो कुछ अपना था, वह सब समाज को अर्पण कर चुके थे।

परम पूज्य गुरुदेव को देशव्यापी दौरे पर निकलना था, अतः सारी गतिविधियों का संपूर्ण भार वंदनीया माताजी पर आया, जो उन्होंने अपने इष्ट का आदेश मान सुचारु रूप से पूर्ण किया तथा निरंतर आगे बढ़ाया। परम पूज्य को साधना काल में वंदनीया माताजी का बराबर सहयोग मिला। माताजी के सहयोग से अखण्ड दीपक, 24 महापुरश्चरणों के लिए था, वह पूरा हो जाने पर भी उसका विसर्जन न होकर आगे भी और प्रज्वलित रखा गया।

अखण्ड अग्नि की स्थापना करने के पश्चात जिस प्रकार उस अग्नि का भोजन, यज्ञ रूप में नित्य होना आवश्यक है, उसी प्रकार अखण्ड दीपक के आगे उसका भोजन कम से कम 60 माला जप नित्य होना आवश्यक समझा गया। अखण्ड अग्नि आज भी गायत्री तपोभूमि में रहती है और नित्य यज्ञ होता है। उसी प्रकार गायत्री तपोभूमि तथा शांतिकुंज में अखण्ड दीपक के आगे नित्य जप होता है। ऋषियुग्म जप का पुण्य परिवार के अनेक परिजनों को पुण्य प्रसाद के रूप में दान करके उनकी भौतिक एवं आत्मिक प्रगति, कष्ट निवारण में सहायता करते रहे हैं।

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