मां गायत्री के वरद पुत्र महाकाल के अवतारी, जिन्होंने इस विराट गायत्री परिवार का पौधा रोपा, हम सबके परमपूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य, जो अस्सी वर्ष का जीवन जीकर एक विराट ज्योति प्रज्वलित कर उस विराट सत्ता में एकाकार हो गए। माता भगवती देवी शर्मा जो हम सबकी परम वंदनीया माता जी शक्ति के रूप में शिव की कल्याणकारी सत्ता का साथ देने अवतरित हुईं। वे भी सूक्ष्म में विलीन हो स्वयं को अपने आराध्य के साथ एकाकार कर ज्योति पुरुष का एक अंग बन गईं। आज दोनों सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, किंतु नूतन सृष्टि कैसे ढाली गई, कैसे मानव गढ़ने का सांचा बनाया गया, इसे शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस, गायत्री तपोभूमि, अखण्ड ज्योति संस्थान एवं युग तीर्थ आंवलखेड़ा एवं हजारों शक्तिपीठों जैसी स्थापनाओं तथा विशाल गायत्री परिवार के रूप में देखा जा सकता है। इस बहुआयामी रूप को जिसमें वे सिद्ध-साधक गायत्री महाविद्या के उपासक, ममत्व लुटाने वाले पिता, मानव मात्र के उत्थान के लिए अभियान चलाने वाले, स्वतंत्रता सेनानी, ऋषि परंपरा को पुनर्जीवित करने वाले मनीषी, विचारक, लेखक, वक्ता अकेला एक व्यक्ति हो, उस महापुरुष के जीवन चरित्र को कैसे लिखा जा सकता है, जिन्होंने 80 वर्ष के जीवनकाल में 800 वर्षों से अधिक का कार्य किया हो।
दोनों ही सत्ताएं परम पूज्य गुरुदेव, परम वंदनीया माता जी एक-दूसरे के लिए समर्पित जीवन जीते रहे। दोनों ही परस्पर सदैव एक-दूसरे को स्वयं का पूरक मानते थे। आदर्शवादी साहसी गायत्री परिवार का संगठन ममत्व की घूटी पिला-पिलाकर दोनों के प्रयास से कैसे खड़ा किया गया है? यह सब कैसे संभव हुआ? यह तो उनके जीवनक्रम को पढ़कर ही समझा जा सकता है।
संवत् 1968 में आश्विन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि (20 सितंबर 1911) को आगरा-जलेसर मार्ग पर स्थित आंवलखेड़ा गांव में प्रातः 9 बजे बालक श्रीराम का जन्म हुआ, जो बाद में वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य कहलाए। पिता श्री रूपकिशोर जी शर्मा तथा माता श्रीमती दानकुंवरि जी की प्रथम संतान के रूप में इस अवतारी सत्ता का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं आर्थिक क्रांति के बाद सारे भारत में आध्यात्मिक क्रांति, विचारक्रांति का बीजारोपण कर इस महान राष्ट्र को देव-मानवों की एक पौधशाला बनाने का कार्य इन्हीं महापुरुष के द्वारा हुआ है। इनकी बाल्यकाल से ही अध्यात्म साधना व गायत्री चर्चा में गहरी रुचि थी।