चार वर्ष की आराध्य से दूरी की सीमा-बंधन वाली परिधि टूट चुकी थी। लगता था, लगता था, कभी भी वे अपने आराध्य से जा मिलेंगी। पूज्यवर जिस समाज-यज्ञ में समिधा की तरह जले, उसमें अपनी अंतिम हविष्य की आहुति देती हुई परम वंदनीया माताजी ने भाद्रपद पूर्णिमा 19 सितंबर सन् 1994 को महालय श्राद्धारंभ की वेला में महाप्रयाण कर, उस विराट ज्योति से एकाकार हो गईं।
युगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति दो चरणों में संपन्न की गई। प्रथम कार्तिक पूर्णिमा (3 से 7 नवंबर 1995) पावन जन्मस्थली आंवलखेड़ा (आगरा) में 1251 कुण्डीय यज्ञ से संपन्न हुई।
द्वितीय क्रमशः विराट विभूति ज्ञानयज्ञ (लाखों दीपों के माध्यम से) दिल्ली में अक्टूबर सन् 2000 में संपन्न हुई।
कार्तिक पूर्णिमा (7 से 11 नवंबर सन् 2000) को 1551 कुण्डीय गायत्री एवं सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ के रूप में गंगा की गोद, हिमालय की छाया शांतिकुंज, हरिद्वार में संपन्न हुई।