वसंत पंचमी सन् 1979 को कम से कम 24 शक्तिपीठें स्थापित करने का संकल्प पूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी ने लिया। संकल्पों एवं निर्माणों का क्रम चला, तो वह संख्या हजारों तक जा पहुंची। वर्ष 1980-81 में पूज्यवर ने निर्मित एवं निर्माणाधीन पीठों में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए देशव्यापी दौरे किए। बाद में यह कार्य उनके प्रतिनिधियों द्वारा संपन्न किए जाने लगे। कार्यक्षेत्र का विस्तार हुआ, स्थान-स्थान और शक्तिपीठें विनिर्मित हुईं। सन् 1980 में ऐसे केंद्र बनने प्रारंभ हुए, जो प्रज्ञा संस्थान, शक्तिपीठ, प्रज्ञा मंडल के रूप में देश व विश्व में फैलते चले गए। एक महत्त्वपूर्ण स्थापना गुरुदेव ने हिमालय की यात्रा से लौटने के बाद की, वह है ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान। जहां विज्ञान और अध्यात्म के समन्वयात्मक प्रतिपादनों पर शोध कर एक नए धर्म वैज्ञानिक धर्म के मूलभूत आधार रखे जाने थे। इस पर गुरुदेव ने बहुत-सा साहित्य लिखा है। अदृश्य जगत के अनुसंधान से लेकर मानव की प्रसुप्त क्षमता के जागरण तक, साधना से सिद्धि एवं दर्शन विज्ञान के तर्क, मंत्र चिकित्सा, यज्ञोपैथी एक विज्ञानसम्मत विधा है आदि आदि। प्रमाण के आधार पर प्रस्तुतीकरण ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में मिलता है।
ब्रह्मवर्चस के नाम से परम पूज्य गुरुदेव के द्वारा एक परिपूर्ण सुसज्जित आधुनिकतम प्रयोगशाला की सन् 1979 में स्थापना हरिद्वार में की गई। विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय एवं गायत्री महाशक्ति व यज्ञ विद्या पर अनुसंधान हेतु सुविज्ञ चिकित्सकों, वैज्ञानिकों का स्वयं मार्गदर्शन कर ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान का गठन किया गया।