ऋषि युग्म का परिचय

युग निर्माण योजना का सूत्रपात

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सन् 1964 से ‘युग निर्माण योजना’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ एवं बाद में ‘युग शक्ति गायत्री’ पत्रिका (दस भाषाओं में) का निरंतर प्रकाशन हो रहा है। मथुरा से अखण्ड ज्योति पत्रिका के साथ-साथ अनेक आध्यात्मिक एवं जीवन जीने की कला, व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण जैसे विषयों पर पुस्तकों का लेखन और प्रकाशन होने लगा। विश्वकोष स्तर का एक ग्रंथ ‘गायत्री महाविज्ञान’ भी प्रकाशित किया गया। परम पूज्य गुरुदेव ने सन् 1967 में गायत्री तपोभूमि मथुरा में युग निर्माण विद्यालय का शुभारंभ किया।

गायत्री तपोभूमि में वंदनीया माता जी के मार्गदर्शन में विभिन्न शिविरों का आयोजन विधिवत किया जाता रहा तथा परम पूज्य गुरुदेव स्वयं छोटे-बड़े सम्मेलनों के द्वारा विचारक्रांति की पृष्ठभूमि बनाते रहे। सन् 1963 में शतसूत्री योजना की घोषणा-राष्ट्रव्यापी समाज-निर्माण के कार्यक्रम का सफल क्रियान्वयन प्रारंभ हुआ। युग निर्माण विचारक्रांति अभियान से ही संभव है। पूज्य गुरुदेव ने इस हेतु शतसूत्री कार्यक्रम तैयार कर उसे जन-जन तक पहुंचाया, जिसका अनुकरण कर हम सुख-शांति एवं देवत्व को प्राप्त कर सकते हैं। लुप्त हो रही हमारी संस्कृति की पुनः स्थापना कर सकते हैं तथा धरती पर स्वर्ग उतार सकते हैं। इसके बाद उनके द्वारा गायत्री यज्ञों की शृंखला का संचालन और सारे देश में मंत्रलेखन साधना का प्रसार किया गया।

चूंकि गुरुदेव को ऋषि परंपरा के बीजारोपण व नई गतिविधियों को कार्यरूप देने हेतु मथुरा छोड़कर हरिद्वार में निवास करना था। उनकी विदाई के पूर्व सहस्रकुण्डीय यज्ञ पांच महायज्ञ टाटानगर (बिहार), बहराइच (उ0प्र0), भीलवाड़ा (राज0), महासमुंद (म0प्र0), पोरबंदर (गुजरात) में संपन्न हुए।

गुरुदेव के द्वारा सन् 1968 में नए आश्रम के लिए सप्तऋषि क्षेत्र हरिद्वार में भूमि खरीदी गई तथा गुरुपूर्णिमा सन् 1969 से उस आश्रम के निर्माण का कार्य मथुरा से जाने के पहले ही आरंभ कर दिया गया था। जिसे आज सभी गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार के नाम से जानते हैं।

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