परमपूज्य गुरुदेव के द्वारा वसंत पर्व सन् 1990 पर महाकाल के संदेश के रूप में भविष्य की रीति-नीति एवं महाप्रयाण की घोषणा की गई थी। वर्ष 1988 जनवरी अखण्ड ज्योति पत्रिका (पृष्ठ 28) में परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं—शरीर परिवर्तन की वेला आते ही यों तो हमें साकार से निराकार होना पड़ेगा, पर क्षणभर में उस स्थिति से अपने को उबार लेंगे और दृश्यमान प्रतीक के रूप में उसी अखण्ड दीपक की ज्वलंत ज्योति में समा जाएंगे। शरीर के निष्प्राण होने के उपरांत जो चर्म-चक्षुओं से हमें देखना चाहेंगे, वे इसी अखण्ड ज्योति की जलती लौ में हमें देख सकेंगे। हमारी प्रवृत्तियां मरेंगी नहीं, वरन् बढ़-चढ़कर अभिनव भूमिका संपन्न करेंगी, मिशन तीर की तरह सनसनाता अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेगा। मिशन के भविष्य के संबंध में हर किसी को इसी प्रकार सोचना चाहिए और निराशा जैसे अशुभ चिंतन को पास भी नहीं फटकने देना चाहिए। 2 जून सन् 1990 गायत्री जयंती के दिन गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्होंने महाप्रयाण किया।