ऋषि युग्म का परिचय

सच्चे समाज सुधारक—युग निर्माता

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समाज में प्रचलित दुष्प्रवृत्तियों, कुरीतियों के विरुद्ध पूज्य गुरुदेव ने लड़ने एवं समाज को नई दिशाएं देने का संकल्प लिया। जिससे करोड़ों लोगों की जीवन दिशा ही बदल गई। विकृत समाज को इक्कीसवीं सदी नारी सदी का उद्घोष दिया। जीवनभर समाज में व्याप्त दुष्प्रवृत्तियों, कुरीतियों के उन्मूलन के लिए आंदोलन चलाए। सभी विषयों पर विपुल साहित्य भी लिखा। समाज में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए जीवन होम दिया। जो कार्यक्रम चले उनमें मुख्य इस प्रकार हैं—

—  भाग्यवाद एवं मुहूर्त्तवाद से हटकर कर्मवाद की प्रेरणा, ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है’ का उद्घोष।

—  सामाजिक कुरीतियों का परित्याग।

—  पशुबलि के विरुद्ध संघर्ष।

—  बाल विवाह, पर्दाप्रथा, दहेज, मृतकभोज का प्रचलन रोकना।

—  पुत्र-पुत्रियों का भेदभाव समाप्त करना।

—  भिक्षावृत्ति निषेध।

—  धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ग, वर्ण, लिंग आधारित ऊंच-नीच व भेदभाव का परित्याग।

—  जुआ, सट्टा, बेईमानी का परित्याग।

—  अंधविश्वास, टोना-टोटका का परित्याग।

—  अमर्यादित प्रजनन पर रोक।

—  पर्यावरण प्रदूषण पर रोक एवं पर्यावरण संरक्षण।

—  आलस्य का परित्याग।

—  पतिव्रत धर्म, पत्नीव्रत धर्म का पालन।

—  तंबाकू, शराब आदि समस्त नशों का परित्याग।

—  अशिक्षा को दूर करना, प्रौढ़ शिक्षा, नारी शिक्षा, रात्रि पाठशालाओं का प्रचलन।

—  अश्लीलता का प्रतिकार।

—  वृक्षारोपण, तुलसीरोपण, जल संरक्षण।

—  आदर्श विवाहों का प्रचलन।

—  वृद्धों का सम्मान एवं उनका समाजसेवा में उपयोग।

—  व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण।

—  आस्तिकता संवर्द्धन।

—  स्वच्छता, सादगी, सज्जनता, सत्य पालन, संयम, सेवा जैसी सत्प्रवृत्तियों का प्रसार।

—  स्वार्थ नहीं परमार्थ की भावना का प्रसार।

—  नर और नारी एक समान की भावना का समान में विस्तार।

—  सत् चिंतन एवं सत् प्रवृत्ति संवर्द्धन के लिए ज्ञानयज्ञ आंदोलन।

—  व्यक्तिवाद नहीं, समूहवाद एवं संघशक्ति की धारणा का पुनर्जागरण।

—  स्वास्थ्य संरक्षण, आरोग्य रक्षा, आसन, प्राणायाम, आयुर्वेद, वनौषधि चिकित्सा एवं एकौषधि चिकित्सा का पुनरुत्थान।

—  गो संरक्षण द्वारा समाज, राष्ट्र का उत्थान।

—  महिला जागरण एवं नारी उत्कर्ष के लिए प्रबल पुरुषार्थ।

—  गायत्री और यज्ञ के माध्यम से सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन, देव दक्षिणा के माध्यम से बुराइयों का त्याग एवं सत्प्रवृत्तियों को धारण कराना, मंदिरों
      को जनजागरण के केंद्र बनाना।

—  भागवत, गीता, रामायण के माध्यम से लोकशिक्षण।

—  अध्यात्म के विज्ञान सम्मत स्वरूप का प्रतिपादन।

—  ‘कला लोकरंजन के लिए ही नहीं, लोकमंगल के लिए भी’ का भाव जन-जन में फैलाना।

—  पुस्तकालयों, वाचनालयों का प्रचलन।

—  दया-करुणा, अहिंसा जैसी सत्प्रवृत्तियों का प्रसार।

—  संस्कारों के माध्यम से समाज में सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन एवं लोक-मानस का परिष्कार।

—  कुटीर उद्योगों एवं स्वावलंबन के प्रचलन-प्रशिक्षण द्वारा राष्ट्र को स्वावलंबी बनाने का पुरुषार्थ।

—  स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज के दर्शन का समाज में सूत्रपात।

—  सत्प्रवृत्तियों द्वारा मनुष्य में देवत्व का उदय एवं धरती पर स्वर्ग की परिकल्पना को साकार करने के प्रयास।

—  निराश समाज में ‘इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य’ के उद्घोष ने नव चेतना का संचार।

—  मानव को महामानव बनाने के लिए ‘युग निर्माण सत्संकल्प’ का उद्घोष।

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