ऋषि युग्म का परिचय

परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

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—  जन साधारण का मनःक्षेत्र जब कुविचारों से छुटकारा पाकर सद्विचारों और सद्भावों की ओर मुड़ता है तो लोगों के जीवन में सत्कर्मों की, आदर्श एवं
      अनुकरणीय आचरणों की अभिवृद्धि होती है। इस प्रकार का सामूहिक सदाचार सूक्ष्म आकाश में एक प्रकार की ऐसी दिव्य सुगंध भर देता है, जिसके
      फलस्वरूप दैवी आशीर्वाद एवं सुख-शांति की सतयुगी वर्षा होने लगती है।

—  काम का चुनाव करते समय अपने हृदय से कभी मत पूछो कि कौन सा अध्यवसाय करके हम प्रसिद्धि या धन प्राप्त कर सकेंगे। उसी काम को चुनो,
      जिसमें तुम मनुष्यता की सारी शक्ति लगा सकते हो और अपने को ऊंचा उठा सकते हो। तुम्हारे लिए न तो धन की आवश्यकता है, न प्रसिद्धि की
      और न कीर्ति की, तुम्हें केवल महानता की जरूरत है।

—   स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज का निर्माण ही युग निर्माण का आधार हो सकता है। सुधरे हुए जीवनक्रम को अपनाना युग निर्माण
       कार्यक्रम का प्रधान अंग है।

—   भौतिक सहायता से हम किसी को उतना सुख नहीं पहुंचा सकते जितना कि उसकी आत्मोन्नति में सहायक बनकर उसके लिए सुखों का द्वार खोलते
       हैं।

—   जिसे गायत्री माता प्यार करती है, उसे और कोई वस्तु चाहे दें, चाहे न दें, पर एक चीज निश्चित रूप से देती हैं—सन्मार्ग की प्रेरणा।

—   प्रेम का मूल्य प्रेम ही है। तुम दूसरों के शरीरों पर शासन कर सकते हों, परंतु जब तक अपना हृदय किसी को समर्पण न कर दो, तब तक उसके हृदय
       पर अधिकार नहीं कर सकते।

—   अध्यात्म किसी को स्वर्ग में भेजता नहीं, वरन् साधक को कहीं भी स्वर्ग का सृजन कर लेने की सामर्थ्य प्रदान करता है।

—   परिवार के प्रमुख लक्षण हैं—एक-दूसरे से प्रेम, सहानुभूति, आत्मीयता और स्वार्थरहित सेवाभाव। एक-दूसरे के लिए त्याग और उत्सर्ग की तत्परता।

—   आवश्यकताओं की कमी स्वयं ही अपने में एक संपन्नता है। एक ऐसी संपन्नता जिसका पोषण करने के लिए न धन की आवश्यकता पड़ती है, न
       पदार्थों की।

—   सुख के समय मित्र हमारी परीक्षा करते हैं और दुःख के समय हम मित्रों की।

—   जो मनुष्य स्वयं नीति का पालन नहीं करता, वह दूसरों को क्या सिखा सकता है?

—   अंतःकरण को कषाय-कल्मषों की व्याधियों से साधना की औषधि ही मुक्त करती है।

—    यदि दान सत्परिणाम उत्पन्न करने वाले कार्य के लिए, लोकहित के सत्कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति के गुजारे के लिए दिया गया है, तो ही वास्तविक दान
        है।

—    दूसरों की सेवा करो। अपने घर वालों से, कुटुंबियों से, संबंधियों से, मित्रों से, परिचितों से सेवामय, प्रेमपूर्ण, उदारता और त्याग से भरा हुआ बरताव
        करो। अपने लिए कम चाहो और दूसरों को अधिक दो।

***

 *समाप्त*

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