अखण्ड ज्योति के प्रथम पृष्ठ पर छपने वाली निम्न पंक्तियां बताती हैं कि अखण्ड ज्योति पत्रिका का क्या उद्देश्य था और जो कार्य किया जा रहा था, वह विश्वव्यापी दुष्प्रवृत्तियों का हलाहल पीकर मृतकों को संजीवनी का रसास्वादन कराया जा रहा था।
सुधा बीज बोने से पहले, कालकूट पीना होगा ।
पहन मौत का मुकुट विश्वहित मानव को जीना होगा ।।
सन् 1937 से ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका का पहले आगरा से प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इसके बाद सन् 1940 से आज तक पत्रिका ‘अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा’ से प्रकाशित होती है। 250 की संख्या से आरंभ हुई अखण्ड ज्योति पत्रिका अब 10 लाख से अधिक (सात अन्य भाषाओं में भी) छपती है। अध्यात्म तत्त्वदर्शन का शास्त्रोक्त एवं विज्ञानसम्मत प्रतिपादन इस पत्रिका के माध्यम से होने लगा। अपने अंग-अवयव बने परिजनों को परिमार्जित करने के उनके प्रयास क्रमशः उत्तरोत्तर सघन होते चले गए। आध्यात्मिक साधना के प्राथमिक पाठों में आत्मशुद्धि व पात्रता संवर्द्धन की महत्ता समझाते थे। इसके बाद अखण्ड ज्योति के माध्यम से भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रतीकों का मर्म समझाना प्रारंभ किया। गंगा, गायत्री, गीता और गौ का महत्त्व समझाते हुए स्वस्तिक, तुलसी, प्रतिमा, देवालय, तीर्थ, पर्व-त्यौहार आदि का विवेचन करते हुए बाद में संस्कारों की प्रक्रिया पर लेखनी चलाई। पत्रिका के साथ-साथ ‘मैं क्या हूं’ जैसी पुस्तकों का लेखन भी प्रारंभ हुआ।
देश स्वतंत्र होने की ओर अग्रसर था। गुरुदेव की गतिविधियां राष्ट्रमुक्ति के साथ-साथ समाज की दिशा में चलने लगीं। कुरीतियों, कुप्रथाओं, मूढ़-मान्यताओं से जकड़े-बंधे समाज को मुक्त करने के लिए उनका रोम-रोम दीवाना हो रहा था। ऋषियुग्म ने अपने अभियान की प्रथम केंद्रस्थली मथुरा को चुना और घीयामंडी में जहां आज अखण्ड ज्योति संस्थान है, आकर रहने लगे। साथ देने के लिए आ गईं परम वंदनीया माता जी। जिन्हें भविष्य में अपने आराध्य-इष्ट के साथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी थी। माता जी के मर्मस्पर्शी पत्रों, भाव-भरे आतिथ्य एवं पीड़ित, दुखियों को ममत्व भरे परामर्श ने गायत्री परिवार का आधार खड़ा किया। वास्तव में देखा जाए तो ऋषियुग्म ने अपने ब्राह्मणत्व भरे जीवन में विश्व के सामने आदर्श उपस्थित किया है।
धर्म संप्रदाय, जाति का भेदभाव पूज्य गुरुदेव व वंदनीया माताजी ने कभी नहीं माना। उससे बढ़कर सभी धर्म संप्रदाय के लोगों में सौहार्द्र बढ़ाया। जब अखण्ड ज्योति संस्थान, मथुरा में छोटी ट्रेडिल प्रिंटिंग मशीन लगाई तो उसका उद्घाटन मुसलमान मशीनमैन अब्दुल से नारियल तुड़वाकर किया।
पूज्यवर की जन्मभूमि आंवलखेड़ा में कोई विद्यालय न था। करुणार्द्र हो उन्होंने अपने हिस्से की भूमि से माता दानकुंवरि इंटर कालेज की स्थापना की। तदुपरांत वहां पर माता भगवती देवी कन्या विद्यालय की स्थापना की गई।