कर्मकांड प्रदीप

युग निर्माणसत्सङ्कल्प

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
१. हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे। 
२. शरीर को भगवान् का मन्दिर समझकर आत्मसंयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे। 
३. मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे। 
४. इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे। 
५. अपने आपको समाज का एक अभिन्न अङ्ग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे। 
६. मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे। 
७. समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अङ्ग मानेंगे। 
८. चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे। 
९. अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे। 
१०. मनुष्य के मूल्याङ्कन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे। 
११. दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करेंगे, जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं। 
१२.   नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे। 
१३.    संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे। 
१४. परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे। 
१५. सज्जनों को सङ्गठित करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे। 
१६. राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिङ्ग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे। 
१७. ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है,’ इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
१८. ‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा,’ ‘ हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा,’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है। 

॥ जयघोष॥

१.     गायत्री माता की- जय।

२.     यज्ञ भगवान् की- जय।

३.     वेद भगवान् की- जय।

४.     भारत माता की- जय।

५.     भारतीय संस्कृति की- जय।

६.     एक बनेंगे- नेक बनेंगे।

७.     हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा।

८.     हम बदलेंगे- युग बदलेगा।

९.     ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल- सदा जलेगी- सदा जलेगी।

१०.    ज्ञान यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर- घर में जायेंगे।

११.    नया सबेरा नया उजाला- इस धरती पर लायेंगे।

१२.    नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।

१३.    जन्म जहाँ पर- हमने पाया।

१४.    अन्न जहाँ का- हमने खाया।

१५.    वस्त्र जहाँ के- हमने पहने।

१६.    ज्ञान जहाँ से- हमने पाया।

१७.    वह है प्यारा- देश हमारा।

१८.    देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे, हम करेंगे।

१९.    युग निर्माण कैसे होगा- व्यक्ति के निर्माण से।

२०.    माँ का मस्तक ऊँचा होगा- त्याग और बलिदान से।

२१.    नित्य सूर्य का ध्यान करेंगे- अपनी प्रतिभा प्रखर करेंगे।

२२.    मानव मात्र- एक समान।

२३.    जाति वंश सब- एक समान।

२४.    नर और नारी- एक समान।

२५.    नारी का सम्मान जहाँ हैं- संस्कृति का उत्थान वहाँ है।

२६.    जागेगी भाई जागेगी- नारी शक्ति जागेगी।

२७.    धर्म की- जय हो।

२८.    अधर्म का- नाश हो।

२९.    प्राणियों में- सद्भावना हो।

३०.    विश्व का- कल्याण हो।

३१.    विचार क्रान्ति अभियान- सफल हो, सफल हो, सफल हो।

३२.    हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।

३३.    हमारा युग निर्माण सत्सङ्कल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।

३४.    इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।

३५.    वन्दे- वेद मातरम्। (तीन बार)


॥ देव- दक्षिणा -श्रद्धानंजलि॥

यज्ञ आयोजन में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को यज्ञ भगवान् के- देवताओं के प्रति श्रद्धा- दक्षिणा के रूप में अपनी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक दुष्प्रवृत्तियों में से कोई एक छोड़ने का अनुरोध करना चाहिए। कहना चाहिए कि देवता किसी की श्रद्धा- भक्ति इसी आधार पर परखते हैं कि उनने कुमार्ग छोड़ने और सन्मार्ग अपनाने के लिए कितना साहस दिखाया। यह साहस ही वह धन है, जिसके आधार पर देव शक्तियों की प्रसन्नता एवं अनुकम्पा प्राप्त की जा सकती है। इस अवसर पर जबकि सभी देवता उपस्थित हुए हैं, सभी उपस्थित सज्जनों को उन्हें कुछ भेंट प्रदान करनी चाहिए। खाली हाथ स्वागत और विदाई नहीं करनी चाहिए। त्याज्य दुष्प्रवृत्तियों में से कुछ का उल्लेख यहाँ किया गया है।

 

त्यागने योग्य दुष्प्रवृत्तियाँ

१.     चोरी, बेईमानी, छल, मुनाफाखोरी, हराम की कमाई, मुफ्तखोरी आदि। अनीति से दूर रहना, अनीति से उपार्जित धन का उपयोग न करना।

२.     मांसाहार तथा मारे हुए पशुओं के चमड़े का प्रयोग बन्द करना।

३.     पशुबलि या दूसरों को कष्ट देकर अपना भला करने की प्रवृत्ति छोड़ना।

४.     विवाहों में वर पक्ष द्वारा दहेज लेने तथा कन्या पक्ष द्वारा जेवर चढ़ाने का आग्रह न करना।

५.     विवाहों की धूमधाम में धन की और समय की बर्बादी न करना।

६.     नशे (तम्बाकू, शराब, भाँग, गाँजा, अफीम आदि) का त्याग।

७.     गाली- गलौज एवं कटु भाषण का त्याग।

८.     जेवर और फैशनपरस्ती का त्याग।

९.     अन्न की बर्बादी और जूठन छोड़ने की आदत का त्याग।

१०.    जाति- पाँति के आधार पर ऊँच- नीच, छूत- छात न मानना।

११.    पर्दाप्रथा का त्याग, किसी को पर्दा करने के लिए बाध्य न करना।

१२.    महिलाओं एवं लड़कियों के साथ पुरुषों और लड़कों की तुलना में भेदभाव या पक्षपात न करना आदि।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118