कर्मकांड प्रदीप

संस्करण के सन्दर्भ में

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युग निर्माण योजना (मिशन) की पहुँच प्रबुद्ध वर्ग से लेकर सुदूर ग्रामाञ्चल के जन- सामान्य तक है, सामान्य लोगों को यज्ञीय मन्त्रों का भावार्थ समझने में असुविधा होने से परिजनों की ओर से बार- बार भावार्थ सहित पुस्तक प्रकाशित करने की माँग आ रही थी। अतः अपने आत्मीय परिजनों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगद्रष्टा पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं परम वन्दनीया स्नेहसलिला माता भगवती देवी शर्मा जी के सूक्ष्म संरक्षण में उन्हीं की प्रेरणा से 'कर्मकाण्ड प्रदीप' भावार्थ सहित प्रकाशित की जा रही है। प्रस्तुत संस्करण में उन सभी कर्मकाण्डों को शामिल किया गया है, जिनकी परिजनों को प्रायः जरूरत पड़ती है। जैसे- गृह प्रवेश, विवाह से पूर्व तिलक, वरीक्षा, हरिद्रा- लेपन, द्वार पूजा, विश्वकर्मा पूजा, मूलशान्ति, एकादशी उद्यापन, वाहन पूजन, गोदान, रस्म पगड़ी, आशौच विचार (सूतक आशौच की अवधि कितनी हो इस सम्बन्ध में बहुत से मत- मतान्तर मान्यताएँ हैं। महामना डॉ. पी.वी.काणे ने 'धर्मशास्त्र का इतिहास'  के तीसरे खण्ड मेंआशौच, आशुच्य पर विभिन्न धर्म ग्रन्थों के उद्धरणों के साथ विस्तृत विवेचना की है, उसमें से कुछ आवश्यक समझा जाने वाला सामयिक समाधान भी इस पुस्तक में दिया गया है) आदि के सहित जीवितश्राद्ध, मातृशोडषी, दीपयज्ञ, संस्कार सूत्र पद्धति एवं शिवाभिषेक को भी शामिल किया गया है। प्रत्येक कर्मकाण्ड से सम्बन्धित मन्त्रों के पूर्व क्रमशः क्रिया निर्देश एवं भाव संयोग के सूत्रों के संकेत भी दिए गए हैं, उन्हें जान- समझकर अपने एवं समय- वातावरण के अनुरूप सन्तुलन बना लेना चाहिए। 

आशा है, यह संस्करण सभी सुधीजनों, खासकर अपने परिजनों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। कर्मकाण्डों का विस्तृत स्वरूप समझने के लिए शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार द्वारा प्रकाशित 'कर्मकाण्ड भास्कर' का सहारा भी लिया जा सकता है। कर्मकाण्ड कैसे प्रभावशाली बनायें, किन- किन तथ्यों का ध्यान रखें, आदि। महत्त्वपूर्ण सूत्र संक्षेप में स्पष्ट रूप से प्रत्येक कर्मकाण्ड के शुरू में ही दिए गए हैं। इन्हें मात्र पढ़ना ही पर्याप्त  नहीं; वरन् जितना हृदयंगम किया जा सके, अनुभूतिगम्य बनाया जा सके, उतना ही प्रभावशाली एवं सजीव वातावरण उपस्थित किया जा सकेगा। 

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