कर्मकांड प्रदीप

एकादशी उद्यापन

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ऋषियों ने एकादशी व्रत का विधान बनाने के पीछे लोगों के अन्दर उदारता, दान, सेवा के भावों को विकसित करना था। आज भौतिकवाद के विकास के कारण लोग भावना विहीन होते जा रहे हैं, इसीलिये व्रत- अनुष्ठानों की महती आवश्यकता है। 

एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति एकादशी को अन्न का परित्याग करते है और फल, शाक, दूध, कन्द का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके पीछे देश के सामाजिक, आर्थिक विकास की दृष्टि है। अगर १० करोड़ लोग भी एकादशी व्रत करते हैं तो ५ करोड़ किलो अनाज की बचत होती है और अन्न की बचत करना अन्न उपजाने जैसा ही है। यह राष्ट्रिय खाद्यान्न की कमी को पूरा करने में एक महत्त्वपूर्ण योगदान जैसा है। 

उदारता और त्याग का अनुपम उदाहरण यहाँ यह है कि व्रत करने वाले द्वादशी के दिन किसी लोकसेवी, धर्मसेवी जिसे ब्राह्मण भी कहा जाता है को दान करके भोजन ग्रहण करते हैं। इस व्यवस्था से लोक सेवी को अपनी आजीविका के उपार्जन की आवश्यकता नहीं रहती और पूरा समय समाज के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान में लगाते हैं। इसीलिये हमारे शास्त्रों मे एकादशी व्रत की महिमा गायी जाती है। प्रारम्भिक पूजन प्रकरण मङ्गलाचरण- पवित्रीकरण से रक्षाविधान तक करने के उपरान्त क्रमशः श्री विष्णुभगवान् एवं लक्ष्मीमाता का आवाहन करें।

श्री विष्णु आवाहन- 
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूढमस्य पा*सुरे स्वाहा। 
ॐ विष्णवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, ध्यायामि।

प्रार्थना- 
ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरेशं, 
विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभांगम्। 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं, 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम्॥ 

लक्ष्मी आवाहन- 
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहो रात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। 
इष्णन्निषाणामुम्मऽ इषाण सर्वलोकं मऽ इषाण। 
ॐ लक्ष्म्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ 

प्रार्थना- 
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, सुवर्णां हेममालिनीम्। 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो मऽआवह॥ 
तदुपरान्त पुरुषसूक्त (पृष्ठ पेज १८६-१९८) से षोडशोपचार पूजन करें। 

उद्यापन सङ्कल्प- 
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्री मद्भगवतो महापुरुषस्य 
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये 
परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे 
भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 
आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते........ क्षेत्रे........स्थले........मासानामासोत्तमे 
 मासे ........पक्षे........तिथौ........वासरे........गोत्रोत्पनः........नामाहं 
  श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं एकादशी व्रतोद्यापनसाङ्गतासिध्यर्थं 
  अंशदानं........समर्पयितुं सङ्कल्पं अहं करिष्ये। 
सुविधानुसार यज्ञ/दीपयज्ञ के शेष क्रम पूरा कर कार्यक्रम समाप्त करें। 

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