कर्मकांड प्रदीप

दीपयज्ञ- युग यज्ञ विधान

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॥ पवित्रीकरणम्॥ 
ॐ पवित्रता मम/ मनःकाय/ अन्तःकरणेषु/ संविशेत्। 
ॐ पवित्रता नः/ सन्मार्गं नयेत्। 
ॐ पवित्रता नः/ महत्तां प्रयच्छतु। 
ॐ पवित्रता नः/ शान्तिं प्रददातु। 
  
॥ प्राणायामः॥ 
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव। यदभद्रं तन्न ऽ आ सुव॥- ३०.३ 
  
॥ चन्दनधारणम्॥ 
ॐ मस्तिष्कं/ शान्तं भूयात्। 
ॐ अनुचितः आवेशः/ मा भूयात्। 
ॐ शीर्षं / उन्नतं भूयात्। ॐ विवेकः / स्थिरी भूयात्। 
  
॥ सङ्कल्पसूत्रधारणम्॥ 
ॐ ईशानुशासनम् / स्वीकरोमि। 
ॐ मर्यादां / चरिष्यामि। 
ॐ वर्जर्नीयं / नो चरिष्यामि। 
  
कलशपूजनम्- ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः....................................... 

गुरुवन्दना- 
ॐ अखण्ड मण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्। 
तत्पदं दर्शितं येन , तस्मै श्रीगुरवे नमः।। 
यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु ,श्रीरामे विद्यते हि या। 
सर्वशक्ति स्वरूपायै , देव्यै भगवत्यै नमः ।। 
ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि। 
  
॥ देवनमस्कारः॥ 
ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो/देवपुरुषेभ्यो नमः। 
ॐ सर्वेभ्यो /महाप्राणेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो / महारुद्रेभ्यो नमः। 
ॐ सर्वेभ्यो/आदित्येभ्यो नमः। ॐ सर्वाभ्यो/मातृशक्तिभ्यो नमः। 
ॐ सर्वेभ्यः / तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।   
ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः। 
  
॥ पञ्चोपचारपूजनम्॥ 
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/ गन्धाक्षतं/ पुष्पाणि/ धूपं/ दीपं/ नैवेद्यं समर्पयामि। दोनों हाथ जोड़कर नमन करें- 
ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय...... 
  
॥अग्निस्थापनम्॥ 
ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। 
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम॥ -५.३६ 
  
॥गायत्री स्तवनम्॥ 
ॐ यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं......(पृष्ठ संख्या 80 पर देखें।) 
  
॥ गायत्री मन्त्राहुतिः॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। 
धियो यो नः प्रचोदयात् स्वाहा॥ इदं गायत्र्यै इदं न मम। -३६.३ 
  
॥ पूर्णाहुतिः॥ 
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा॥- बृह.उ. ५.१.१; ३.४९ 

ॐ सर्वं वै पूर्ण * स्वाहा। 
॥ नीराजनम् (आरती)॥ 

ॐ यं ब्रह्मवेदान्तविदो वदन्ति, परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये। 
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा, तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥ 

ॐ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः, स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवैः, 
वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैः, गायन्ति यं सामगाः। 

ध्यानावस्थित- तद्गतेन मनसा, पश्यन्ति यं योगिनो, 
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः, देवाय तस्मै नमः॥ 
  
॥ शान्ति- अभिसिञ्चनम्॥ 
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष* शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। 
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः सर्व*शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥ 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। 
सर्वारिष्ट- सुशान्तिर्भवतु। -36.17

॥ विसर्जनम्॥ 
ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम्। 
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं, पुनरागमनाय च॥ 

इसके पश्चात् जयघोष अन्त में प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम समाप्त किया जाए। 
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