कर्मकांड प्रदीप

मातृषोडशी

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जो बालक- बालिकाएँ अपनी माँ का अन्तिम संस्कार करते हैं, उन्हें परम्परा अनुसार मातृषोडशी संस्कार भी करना चाहिए। 
  
क्रिया भावना- मातृषोडशी हेतु एक पत्तल में आटे के १६ पिण्ड (जौ, तिल, चावल मिलाकर) दक्षिणभिमुख होकर श्रद्धापूर्वक समर्पित करें। 

माता का आवाहन- 
हे माता! आपने गर्भ धारण करने से लेकर जन्म देने केबाद शैशवकाल तक मेरा पालन किया। मैं कुशा पर आपका तिलोदक से आवाहन करता हूँ। 
आगर्भज्ञानपर्यन्तं पालितो यत्त्वया ह्यहम्। 
आवाहयामि त्वां मातर्दर्भपृष्ठे तिलोदकैः॥ 

माता को पिण्डदान- 
हे माँ! गर्भावस्था में ऊँची- नीची भूमि पर चलते हुए आपको जो कष्ट हुआ, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ १॥ 

गर्भे दुर्गमने दुःखं विषमेभूमिवर्त्मनि। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १॥

जब तक पुत्र जन्म नहीं ले लेता, तब तक माता शोकाकुल रहती है, उसके निष्क्रमण के लिए मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ २॥

यावत्पुत्रो न भवति तावनमाताथ शोचते। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ २॥

हे माता! आपने प्रसव की वेदना से प्रत्येक मास में काफी कष्ट उठाया। उसके निष्क्रमण के लिए मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ३॥

मासि मासि कृतं कष्टं वेदनाप्रसवेषु च। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ३॥

प्रसव के पूर्व अवस्था में दसवें माह में आपको अत्यन्त पीड़ा हुई थी, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ४॥

यत्पूर्णे दशमे मासि चात्यन्तं मातृपीडनम्। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ४॥
 
कभी- कभी जब पुत्र पैरों की ओर से जन्म लेता है, तो माता को अत्यन्त वेदना होती है। उसके निष्क्रमण के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करताहूँ॥ ५॥

पद्भ्यां प्रजायते पुत्रो जनन्याः परिवेदनम्। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ५॥

प्रसव हो जाने पर दुर्बलता के कारण माता जितना कष्ट सहती है, उसकेनिष्क्रमण के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ६॥
 
शैथिल्ये प्रसवे प्राप्ते माता विन्दति दृष्कृतम्। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ६॥

माता! प्रसव केउपरान्त विविध प्रकार के कड़ुवे द्रव्यों (कड़वी औषधियों) के काढ़े पीती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ७॥

पिबन्ती कटुद्रव्याणि क्वाथानि विविधानि च। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ७॥

तीन रात तक उपवास करने से माता की देह सूख जाती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ८॥

अग्निना शुष्कदेहा वै त्रिरात्रं पोषणेन च। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ८॥

रात्रि के समय शिशु के मल- मूत्र के कारण कर्मठ माताएँ दुःख से मानो टूट जाती हैं, उससे उऋण होने हेतु मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करताहूँ॥ ९॥

रात्रौ मूत्रपुरीषाभ्यां भिद्यन्ते मातृकर्मठाः। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ९॥

जो माता दिन- रात शिशु के पोषण के लिए स्तनपान कराती रहती है, उससे उऋण होने के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ १०॥

दिवा रात्रौ च या माता ददाति निर्भरस्तनम्। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १०॥

जो माता गर्भ धारण के समय प्रसव के पश्चात् माघ मास की सर्दी, वैशाख- ज्येष्ठ की गर्मी तथा शिशिर ऋतु में अत्यन्त कष्ट उठाती है, उससे उऋण होने के लिए मैं मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ ११।

माघे मासि निदाघे च शिशिरेऽत्यन्तदुःखिता। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ ११॥

भूख से पीड़ित बच्चे के लिए माता अपने हिस्से का जो भोजन प्रदान कर देती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करताहूँ॥  १२॥

क्षुधया विह्वले पुत्रे ह्यन्नं माता प्रयच्छति। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १२॥

पुत्र के बीमार पड़ने पर माता हाय- हाय करके जो क्रन्दन करती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ १३॥

पुत्रो व्याधिसमायुक्तो माता हा क्रन्दकारिणी। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १३॥

महाभयंकर यम के द्वार पर जाते हुए मार्ग में माता जो शोकाकुल होती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥१४॥ 
 
यमद्वारे महाघोरे पथि माता च शोचति। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १४॥

जब तक पुत्र बच्चा रहता है, तब तक माता- अल्पाहार करती रहती है, उसके निष्क्रमण के लिए मैं यह मातृपिण्ड प्रदान करता हूँ॥ १५॥

अल्पाहारस्य कारिणी यावत्पुत्रश्च बालकः। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १५॥

मृत्यु के समय माता को असाध्य शारीरिक कष्ट हुए, उस ऋण से उऋण होने के लिए मैं यह अन्तिम पिण्ड समर्पित करता हूँ॥ १६॥

गात्रभङ्गो भवेन्मातुः मृत्युरेव न संशयः। 
तस्या निष्क्रमणार्थाय मातृपिण्डं ददाम्यहम्॥ १६॥ 
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