कर्मकांड प्रदीप

मेखलापूजन

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सूत्र सङ्केत-
यज्ञ कुण्ड के चारों ओर मेखलाएँ बनाई जाती हैं। कुण्डों में ये सीढ़ीनुमा होती हैं। वेदी पर यज्ञ करते समय तीन रेखाएँ विनिर्मित की जाती हैं। अन्दर वाली मेखला सफेद, बीच वाली लाल तथा बाहर वाली काली होती है। इन्हें तीनों गुणों- सत्, रज और तम का प्रतीक माना जाता है। संसार तीन गुणों के संयोग से बना है। यज्ञ उनके बीच सन्तुलन और चेतना को ऊर्ध्वगामी करने में समर्थ बनाने के लिए किया जाता है। 

तीनों मेखलाओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सत्ता स्थापित करके उन्हें पूजित किया जाता है। यज्ञ एक महान् ऊर्जा है, इसे बिजली और अणु शक्ति की तरह अनुशासन तथा मर्यादा के अन्तर्गत प्रयुक्त किया जाना चाहिए, मेखलाएँ मर्यादा और अनुशासन की प्रतीक मानी जाती हैं। ब्रह्मा, विष्णु,महेश- सृजन, पालन और परिवर्तन की संयोजक देवशक्तियाँ हैं। इनके अनुरूप ही यज्ञ का विकास और प्रयोग किया जाता है। 

क्रम व्यवस्था-
बड़े यज्ञों में, विस्तारपूर्वक कराये जाने वाले संस्कार आदि के समय यज्ञ में मेखलाओं का पूजन कराया जा सकता है। पूजन करने वालों के हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन या रोली आदि देकर मन्त्र बोले जाएँ और आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि के साथ सम्बन्धित मेखला पर सामग्री चढ़ा दी जाए। मन्त्र के साथ भावना रखी जाए कि त्रिदेवों की चेतना की स्थापना की जा रही है, जो हमारे यज्ञ और यज्ञीय भाव को सन्तुलित, अनुशासित और प्रभावशाली बनाने में समर्थ है। 

॥ विष्णु॥ (ऊपर की सफेद मेखला)

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। 
समूढमस्य पा*सुरे स्वाहा। 
ॐ विष्णवे नमः। 
आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, ध्यायामि।- ५.१५

अर्थात्- हे विष्णुदेव! आप अपने सर्वव्यापी प्रथम पद पृथ्वी में, द्वितीय पद अन्तरिक्ष में तथा तृतीय पद द्युलोक में स्थापित करते हैं। भूलोक आदि इनके पद- रज में अन्तर्हित हैं। इन सर्वव्यापी विष्णुदेव को यह आहुति दी जाती है। 

॥ ब्रह्मा पूजन॥ (बीच की लाल मेखला)

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽ आवः। 
स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्यविष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः। 
ॐ ब्रह्मणे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, ध्यायामि। -१३.३

अर्थात्- सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्म रूप में परमात्म शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, वही शक्ति समस्त ब्रह्माण्ड में व्यवस्था रूप में व्याप्त हुई। यही कान्तिमान् ब्रह्म (सूर्यादि) विविध रूपों में स्थित अन्तरिक्षादि विभिन्न लोकों को तथा व्यक्त जगत् एवं अव्यक्त जगत् को प्रकाशित करते हैं। 

॥ रुद्र॥ (नीचे की काली मेखला)

ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो तऽइषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः। 
ॐ रुद्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि, ध्यायामि।- १६.१

अर्थात्- हे रुद्रदेव (दुष्टों को रुलाने वाले)! आपके मन्यु (अनीति- दमन के लिए क्रोध) के प्रति हमारा नमस्कार है। आपके बाणों के लिए हमारा नमस्कार है। आपकी दोनों भुजाओं के लिए हमारा नमस्कार है।
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