आर्ष ग्रन्थों, वेद, उपनिषद्, प्रज्ञोपनिषद् (प्रज्ञापुराण) आदि की स्थापना विधिपूर्वक, श्रद्धा भरे वातावरण में कराई जाय। स्थापना के साथ उसके नियमित (न्यूनतम) अध्ययन का संकल्प भी कराया जाय। संक्षिप्त प्रारूप इस प्रकार है-
सर्वप्रथम षट्कर्म, तिलक, रक्षासूत्र, कलशपूजन, दीपपूजन, गुरु- गायत्री आवाहन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन, तक की प्रक्रिया पूरी करके पूजावेदी पर वेदपुरुष का आवाहन करें।
ॐ वेदोसि येन त्वं देव वेद देवेभ्यो वेदोभवस्तेन मह्यं वेदो भूयाः।
देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित। मनसस्पतऽ इमं देव यज्ञ * स्वाहावाते धाः॥ -२.२१
ॐ वेदपुरुषाय नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि।
दोनों हाथ से स्पर्श करें, प्राण प्रतिष्ठा करें।
ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं, यज्ञ * समिमं दधातु।
विश्वेदेवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ॥ -२.१३
इसके पश्चात् पञ्चोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करा देना चाहिए। तत्पश्चात् सम्भव हो, तो यज्ञ अथवा दीपयज्ञ की प्रक्रिया जोड़ें। कर्मकाण्ड का कोई अंश घटाना या बढ़ाना हो, तो विवेकपूर्वक कर लें।
देवस्थापना के क्रम में गुरुदेव ने पूजनपूर्वक गायत्री मन्त्र, गायत्री माता का चित्र, युग शक्ति की प्रतीक मशाल, पञ्चदेव चित्र आदि की स्थापना का क्रम चलाया था। इसे एक प्रकार से चित्रों की प्राण प्रतिष्ठा माना जाता है। श्रद्धापूर्वक स्थापना से उपासना स्थल में दिव्यता कासञ्चार होता है। स्थापना के साथ वहाँ परिवार जनों द्वारा नियमित पूजा उपासना का क्रम चलाने की शर्त रखी जाती है। वेद स्थापना की ही तरह कर्मकाण्ड की सारी प्रक्रिया पूरी करें। केवल वेदपुरुष के स्थानपर महाकाल एवं महाशक्ति या सम्बन्धित इष्टदेव का आवाहन करें।
महाकाल आवाहन
ॐ प्रखर प्रज्ञाय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नः श्रीरामः प्रचोदयात्॥
महाशक्ति आवाहन
ॐ सजल श्रद्धाय विद्महे महाशक्त्यै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्॥