कर्मकांड प्रदीप

विश्वकर्मा पूजन

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ईश्वरेच्छा कहें या समय का प्रभाव, विश्वकर्मा पूजा इन दिनों सभी छोटे- बड़े तकनीकी संस्थानों में होने लगी है। तकनीकी संस्थानों से जुड़े सभी सम्प्रदायों के अनुयायी, बिना भेदभाव के इसमें भाग लेते हैं। जन भावना का सम्मान और उभरे उत्साह- प्रवाह के सदुपयोग हेतु विश्वकर्मा पूजा को सन्तुलित, व्यावहारिक, उपयोगी स्वरूप देने की आवश्यकता अनुभव हुई। पू. गुुुरुदेव ने स्वयं कहा है कि इस समय परमात्मसत्ता काल- समय की गति बदलने के लिए ‘विश्वकर्मा’ रूप में सक्रिय है। विश्वकर्मा पूजा के माध्यम से नवसृजन का सन्देश और सङ्कल्प सब तक सहज क्रम में पहुँचाया जा सकता है। छोटे- बड़े तकनीकी संस्थानों- संगठनों से जुड़े परिजन इसे जगह- जगह व्यवस्थित एवं  प्रभावी रूप दे सकते हैं। आवश्यकतानुसार भविष्य में इसे व्याख्या सहित प्रकाशित किया जा सकता है। 

किसी भी पर्व पूजन की तरह देवमञ्च सजाएँ। विश्वकर्मा जी का पौराणिक चित्र मिल जाए, तो उसे स्थापित करें, अन्यथा ईश्वर के नव सृजन अभियान की प्रतीक लाल मशाल को भी प्रतीक रूप में स्थापित किया जा सकता है। 

सुविधा हो तो युग संगीत, कीर्तन आदि से श्रद्धा का वातावरण बनाएँ। युगयज्ञ पद्धति के आधार पर क्रमशः

(१) पवित्रीकरण 
(२) सूर्यध्यान- प्राणायाम 
(३) तिलक धारण कराएँ। 
(४) पृथ्वी पूजन, भूमि के प्रति श्रद्धाभिव्यक्ति के साथ ‘ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका...’ (पेज -३२ से) मन्त्र बोलकर पृथ्वी वन्दन कराएँ। अन्त में एतत् कर्मप्रधान श्रीविश्वकर्मणे नमः बोलें। 

अथवा षट्कर्म से लेकर रक्षाविधान तक यज्ञका कर्मकाण्ड कराएँ विशेष पूजन- सम्भव हो तो सभी के हाथ में अक्षत पुष्प दें, फिर विश्वकर्मा देव का आवाहन करें।

ॐ कंबासूत्राम्बुपात्रं वहति करतले 
पुस्तकं ज्ञानसूत्रम्। हंसारूढस्त्रिनेत्रः शुभमुकुटशिरा सर्वतो वृद्धकायः।
त्रैलोक्यं येन सृष्टं सकलसुरगृहं, राजहर्म्यादि हर्म्यं देवोऽसौ सूत्रधारो 
 जगदखिलहितः पातु वो विश्वकर्मन्।। भो विश्वकर्मन्! इहागच्छ इह तिष्ठ, 
अत्राधिष्ठानं कुरु- कुरु मम पूजां गृहाण।। 
षोडशोपचार पूजनम्- समयानुसार पुरुषसूक्त अथवा सामान्य ढंग से षोडशोपचार पूजन सम्पन्न करें। 

प्रार्थना-
नमामि विश्वकर्माणं 
द्विभुजं विश्ववन्दितम्। 
गृहवास्तुविधातारं महाबलपराक्रमम्।। 
प्रसीद विश्वकर्मस्त्वं शिल्पविद्याविशारद। 
दण्डपाणे! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्तिधरप्रभो! 

उक्त स्तुति में विश्वकर्मा जी के हाथ में चार प्रतीक कहे गये हैं-

१. पुस्तक २. पैमाना ३.जलपात्र ४. सूत्र- धागा। यह सृजन के चार अनिवार्य माध्यमों के प्रतीक हैं। सृजन के लिए चाहिए 
(१) ज्ञान (पुस्तक), (२) सही मूल्याङ्कन (पैमाना), (३) शक्तिसाधन (पात्रता), (४) कौशल का सतत क्रम (सूत्र)। इन्हें प्रतीक रूप में देव मञ्च पर स्थापित करें। संक्षिप्त व्याख्या करके भाव भरी प्रार्थना करें। यह प्रार्थना करते हुए मञ्च पर प्रतिनिधि क्रमशः चारों प्रतीकों (पुस्तक, पैमाना, जलपात्र एवं सूत्र) पर पुष्प- अक्षत चढ़ायें।

प्रार्थना- 
हे विश्वकर्मा प्रभो! 
(१) हमें सृजन का ज्ञान दें, अवसर दें, और ऐसी समझदारी दें, ताकि हम उसका लाभ उठा सकें। (पुस्तक स्पर्श) 
(२) हमें सृजन का उत्साह दें और ऐसी ईमानदारी दें कि हम उसके साथ न्याय कर सकें। (पैमाना का स्पर्श) 
(३) हमें शक्ति- साधना दें और ऐसी जिम्मेदारी दें कि हम उनका सदुपयोग कर सकें (पात्र का स्पर्श)। 
(४) हमें वह कौशल और उसे वहन करते रहने की बहादुरी प्रदान करें। (सूत्र का स्पर्श)। 


विश्वकर्मन् नमस्तेऽस्तु, 
विश्वात्मन् विश्वसम्भवः। 
अपवर्गोऽसि भूतानां, पंचानां परतः स्थितः- महा.शान्ति-४७/८५

प्रार्थना के बाद युगयज्ञ पद्धति से चारों प्रतीकों सहित विश्वकर्मा जी का पञ्चोपचार पूजन करें। तत्पश्चात् अग्निस्थापन से हवन का क्रम सम्पन्न करें अथवा दीपयज्ञ करें। दीपयज्ञ- ५ या २४ दीपक प्रज्वलित करके दीपयज्ञ के साथ ७ या ११ बार गायत्री मन्त्र की आहुति दें। विशेष आहुति- एक या तीन आहुतियाँ नीचे लिखे मन्त्र से दें-

ॐ विश्वकर्मन् हविषा वावृधानः स्वयं यजस्व पृथिवीमुत द्याम्। 
मुह्यन्त्वन्ये अभितः सपत्नाऽ इहास्माकं मघवा सूरिरस्तु स्वाहा। 
इदं विश्वकर्मणे इदं न मम।। -यजु० २७.२२ 

कोई सृजन सङ्कल्प लेने का आग्रह करके पूर्णाहुति मन्त्र बोलें। आरती करें। विश्वकर्मा प्रभु को यज्ञरूप कहकर ‘यज्ञ रूप प्रभो....’(पेज -१२५ से) आरती की जाय अथवा विश्वकर्मा जी की आरती हो, तो उसे करें। नमोस्तवनन्ताय..(पेज -११४ से) मन्त्र से नमस्कार कराकर जयघोष एवं प्रसाद वितरण करें।
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