कर्मकांड प्रदीप

लोकप्रिय मन्त्र

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(१) प्रातःकाल जागने पर दोनों हाथों का दर्शन करते हुए (करदर्शनम्):- 

कराग्रे वसते लक्ष्मीः, करमूले सरस्वती। 
करमध्ये तु गोविन्दः, प्रभाते करदर्शनम्।। 

भावार्थ- हाथ के अग्रभाग में सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी रहती हैं। हाथ के मूल (कलाई) में विद्या की देवी सरस्वती वास करती हैं। हाथ के मध्य में    सभी इन्द्रियों को वश में करने वाले स्वयं गोविन्द वास करते हैं। इसलिए सुबह उठते ही हाथों का दर्शन करना चाहिए। 

(२) स्नान के समय भावना करें हे नदियो! आप सभी मेरे इस स्नान जल में पधारें :- 

समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले। 
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं, पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।। 

भावार्थ- जिन देवी ने समुद्र रूपी वस्त्र धारण कि ये हों, पर्वत रूपी जिनके स्तन हों, जो विष्णु की पत्नी हैं, ऐसी हे माँ ! मेरे पैर आपको स्पर्श कर रहे हैं, आप मुझे क्षमा करें। 
  
(३) गङ्गे च यमुने चैव, गोदावारि सरस्वति। 
नर्मदे सिन्धु कावेरी, जलेऽस्मिन् सन्निधं कुरु।। 

(४) तिलक लगाने हुए (चन्दन धारणम्)- 
चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पाप नाशनम्। 
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा।। 

(५) दीपक अथवा कोई प्रकाश प्रज्वलित करते हुए (दीप पूजनम):- 
ॐ अग्रिर्ज्योतिर्ज्योतिरग्रिः स्वाहा। सूर्यो र्ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा।। 
अग्रिर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा। सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चः स्वाहा।। 
ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्योतिः स्वाहा।। 

(६) सायं प्रकाश करते समय (ज्योतिवन्दन)- 
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्य धनसम्पदः। 
शत्रूणां भय नाशाय, दीप ज्योतिर्नमोऽस्तु ते।। 

(७) कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले (( गणेश- वन्दना )- 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। 
निर्विघ्नं कुरु मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा।। 
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्। 
उमासुतं शोक विनाश कारकं , नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम्।। 
सुमुखश्चैकदन्तश्च, कपिलो गजकर्णकः। 
लम्बोदरश्च विकटो, विघ्ननाशो विनायकः ।। 
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो, भालचन्द्रो गजाननः। 
द्वादशैतानि नामानि, यः पठेच्छृणुयादपि ।। 
विद्यारम्भे विवाहे च, प्रवेशे निर्गमे तथा ।। 
संग्रामे सङ्कटे चैव, विघ्नस्तस्य न जायते ॥ 
  
(९) सर्वकल्याण हेतु प्रार्थना- 

ॐ सर्वेषां स्वस्तिं भवतु, सर्वेषां शान्तिर्भवतु। 
सर्वेषां पूर्णं भवतु, सर्वेषां मङ्गलं भवतु।। 

भावार्थ- हे प्रभो! विश्व के सर्व प्राणी एक दूसरे के हेतु कल्याणकारी हों, सर्व को शान्ति प्राप्त हो, सभी सम्पूर्णता एवं निपुणता प्राप्त करें, सर्व मङ्गल हो- कल्याण हो। 
  
(१०) विश्वकल्याणार्थ प्रार्थना- 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्।। 

भावार्थ- हे प्रभो! विश्व के समस्त प्राणी सुखी हों, सभी निरोगी हो, सभी शुभ एवं कल्याणमय (सकारात्मक) देखें, कभी किसी कोई पीड़ा एवं दुःख न हो। विश्व में सर्वत्र शान्ति हो। 

(११) विश्वकल्याण की भावना का मन्त्र (किसी भी शुभकार्य में)- 

ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषाः विश्ववेदाः। 
स्वस्ति नस्ताक्र्ष्योअरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। -२५.१९ 

(१२) सुप्रभात में शुभकामना ः ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा नवग्रहों से मङ्गल कामना के लिए (किसी शुभ कार्य अथवा पूजा के प्रारम्भ में प्रार्थना)।
 
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च। 
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः, सर्वेग्रहाः शान्तिकराभवन्तु।। 

(१३) प्रभु को साष्टाङ्ग प्रणाम करते हुए (साष्टाङ्ग नमस्कार)- 

ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये,सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे। 
सहस्रनाम्नेपुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः।। 

(१४) विश्व में शान्ति एवं सर्व कल्याण के लिए (शान्ति पाठ)- 

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष * शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व * शान्तिः शान्तिरेवशान्तिःसामा शान्तिरेधि।। 
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न ऽ आ सुव ।। 
ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!! सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु।। 

(१५) सूर्य को अर्घ्य देते समय- 

ॐ सूर्यदेव सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते। 
अनुकम्पय मां भक्त्या, गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥ 
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः।। 

(१६) अपनी दैनिक पढ़ाई प्रारम्भ करने के पूर्व (सरस्वती वन्दना)- 

सरस्वती वन्दना 
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता। 
या वीणा वर दण्ड मण्डितकरा, या श्वेत पद्मासना। 
या ब्रह्माच्युत शङ्कर प्रभृतिभिः, देवैः सदा वन्दिता। 
सा मां पातु सरस्वती भगवती, निःशेष जाड्यापहा।। 

भावार्थ- जो चमेली के पुष्पों के समान कान्तिमय हैं, जिनका श्वेत हार हिम की बूँदों के समान है, जो श्वेत वस्त्रों को धारण किये हैं, जिनकी सुन्दर हथेलियों एवं भुजाओं में ज्ञान की वीणा सुशोभित है, जो श्वेत कमलपुष्प के आसन पर विराजमान हैं। जो ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के लिए भी सदा वन्दनीय हैं, ऐसी विद्या की देवी माँ सरस्वती, आप मेरे अज्ञान, आलस्य एवं प्रमाद को जड़- मूलसहित दूर कर मेरी रक्षा करें। 

(१८) भोजन के पूर्व (ब्रह्मार्पणम्)
 
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम्। 
ब्रह्वैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म- कर्म-समाधिना।।। 
हर्रिदाता हर्रिभोक्ता हर्रिअन्नं प्रजापति। 
हरिः सर्व शरीरस्थो भोक्ते भुज्यते हरिः ।। 

(१९) गुरु- शिष्य प्रार्थना 

गुरु और शिष्य, शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के बीच पवित्र एवं सम्मान की भावना का विकास होना आवश्यक है, इस प्रार्थना में गुरु- शिष्य ईश्वर से विनती करते हैं कि- 

ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। 
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ 
ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः !!! 

भावार्थ : हे प्रभो! हम दोनों की रक्षा करें। हम दोनों का पालन करें। हमारे संग हमें सर्व शक्तियों से पूर्ण करें। हमारा विद्यार्जन दैवी एवं तेजस्वी हो। हमारा आपस में कभी द्वेष न हो। 

शिव- शक्ति वन्दना 

ॐ रुद्राः स * सृज्यपृथिवीं बृहज्ज्योतिः समीधिरे। 
तेषां भानुरजस्रऽ इच्छुक्रो देवेषु रोचते॥ -११.५४ 

ॐ याते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी। 
शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे॥ -१६.४९ 
ॐ शिव- शक्त्यै एक रूपिण्यै नमः 

श्री कृष्ण वन्दना 
ॐ वंशी विभूषितकरान्नवनीरदाभात् 
पीताम्बरा तरुणविम्बफ लाधरोष्ठात्। 
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात् 
कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥ 
ॐ श्रीकृष्णाय नमः। 
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