भारतीय संस्कृति में गौ को माता मानकर पूजा जाता है। गोदान को सर्वश्रेष्ठ दान कहा जाता है। गाय ने भले ही सारे विश्व वसुधा को बनाया ना हो किन्तु वह पोषण संवर्धन सभी का करती है। इसी से हमारे यहाँ कहा गया है... गावो विश्वस्य मातरः। वह न केवल मनुष्य बल्कि, पशु- पक्षी, नदी, तालाब, खेत, जंगल, हवा, पानी, आकाश आदि सभी का पालन पोषण करती है। उन्हें शुद्ध पवित्र रखती है। मनुष्य के कई रोग तो, उसके साथ रहने व उसे प्रेम से सहलाने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। गोमूत्र के नियमित पान से तो प्रायः सारे रोग नष्ट हो जाते हैं, उसके द्वारा दिये जाने वाले हर पदार्थ अमृत गुणों से युक्त और जीवनदायी है। माता तो माता ही है, किन्तु जिस दिन हमारा ध्यान मात्र दूध देने वाले गुण से हटकर उसके पालन पोषण संरक्षण करने वाले गुणों पर जाएगा, तो हम सब सुखी हो जाएंगे।
पूजन विधि में जहाँ मन्त्र नहीं दिये गये हैं, वहाँ यज्ञ कर्मकाण्ड प्रकरण में से दिये गये मन्त्रों का उपयोग करेंं।
मङ्गलाचरण, पवित्रीकरण, तिलक, कलावा, गौशाला- भूमि पूजन (स्पर्श) गुरु, गायत्री, गणेश, गौरी आवाहन के पश्चात् गोपाल एवं गोमाता का आवाहन पूजन करें।
गोपाल आवाहन
ॐ वसुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्दनम् ।।
देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।
गौमाता पूजन
ॐ आवाहयाभ्याम् देवीं, गां त्वां त्रैलोक्यामातरम् ।।
यस्यां स्मरणमात्रेण, सर्वपाप प्रणाशनम् ।।
त्वं देवीं त्वं जगन्माता, त्वमेवासि वसुन्धरा ।
गायत्री त्वं च सावित्री,
गंगा त्वं च सरस्वती।।
आगच्छ देवि कल्याणि,
शुभां पूजां गृहाण च।
वत्सेन सहितां माता,
देवीमावाहयाम्यहम्।।
आवाहन के बाद सभी दैवी शक्तियों का पूरुषसूक्त (पृष्ठ १८६ से १९८) से षोडशोपचार पूजन करें- तदुपरान्त
गोग्रास अर्पण
ॐ सुरभिवैष्णवी माता
नित्यं विष्णुपदे स्थिता ।।
ग्रासं गृह्यातु सा धेनुर्यास्ति त्रैलोक्यवासिनी ।।
ॐ सुरभ्यै नमः।
नैवेद्यं निवेदयामि ।।
पुष्पाञ्जलि/ माला अर्पण
ॐ गोभ्यो यज्ञा प्रवर्तन्ते ,
गोभ्यो देवाः समुत्थिताः ।।
गोभ्यो वन्दाः समुत्कीर्णाः,
सषडगं पदक्रमाः ।।
ॐ सुरभ्यै नमः पुष्पाञ्जलीं / पुष्प मालां समर्पयामि
सङ्कल्प-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुःश्रीमद्भगवतो
महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया
प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये
परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे
वैवस्वतमन्वन्तरे भूर्लोके जम्बूद्वीपे
भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते........क्षेत्रे........स्थल........मासानामासोत्तमे मासे........पक्षे........तिथौ........वासरे........
गोत्रोत्पनः........नामाहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफल प्राप्तये
ज्ञाताज्ञातानेकजन्मार्जित पापशमनार्थं धनधान्यआयुः- आरोग्यं निखिल
वाञ्छित सिद्धये पितृणां निरतिशयानन्द
ब्रह्मलोकावाप्तये च इमां सुपूजितां सालङ्कारां सवत्सांगौ........निमित्तं तुभ्यमहं सम्प्रददे।
तदुपरान्त गौमाता की यानि- कानि........या सप्तास्यासन........मन्त्र से परिक्रमा करें। गौमाता की आरती उतारें। सभी दैवी शक्तियों को प्रणाम कर शान्तिपाठ के साथ कार्यक्रम समाप्त करें।