प्रकाश पुत्रों की जीवट (kavita)

May 2003

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यह सच है तमभरी−अमावस, है चहुँदिशि गहराई। पर प्रकाश पुत्रों ने, तम हरने की शपथ उठाई॥

यह प्रकाशपुँज की पीड़ा अरे! उन्हें खलती है, रे प्रकाश पुत्रों, क्यों तम की मनमानी चलती है। इसीलिए क्या जीवन भर ही पीड़ा तुम्हें पिलाई, अब प्रकाश पुत्रों ने, तम हरलने की शपथ उठाई॥

क्यों अज्ञान−तिमिर गहराए सविता−सुत के रहते, महाप्राज्ञ के वंशज क्यों अज्ञान−तिमिर को सहते। सविता−सुत की छाती, इस पीड़ा से अब भर आई, अब प्रकाश पुत्रों ने, तम हरने की शपथ उठाई॥

पंक्तिबद्ध होकर प्रकाश पुत्रों की पंक्ति चलेगी, तम के हर एक मोरचे पर जा, तम को ध्वस्त करेगी। जनमानस आलोकित करने, ज्ञान मशाल उठाई, क्योंकि अब तमभरी−अमावस, है चहुँदिशि गहराई॥

उसे शक्ति संगठनकरण की, यह सामर्थ्य पता है, घोर अमावस में दीपों ने नवइतिहास रचा है। पंक्ति बद्ध होकर दीपों ने दीपावली बनाई, अब प्रकाश पुत्रों ने, तम हरलने की शपथ उठाई॥

मातृस्नेह छलछला उठा है, प्राण−प्रदीप जलेंगे, महाप्राज्ञ के वंशज, तम−छाती पर मूँग दलेंगे। जनपथ को आलोकित करने, जीवट आज जगाई, क्योंकि अब तमभरी−अमावस, है चहुँदिशि गहराई॥

मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’

*समाप्त*


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