श्रद्धास्पद एवं वैभववान् बनाती है (kahani)

May 2003

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हेनरी फोर्ड अमेरिका के मूर्द्धन्य धनाढ्य थे तो भी वे बहुत सादगी से रहते थे।

फोर्ड का एक सूट पुराना हो गया था। फटने भी लगा था। सचिव ने कहा, ”नया सिला लेना चाहिए, लोग क्या कहेंगे?”

फोर्ड मुस्कराए और बोले, “अभी इसकी मरम्मत करा लेने से काम चल सकता है। मिलने वाले सभी जानते हैं कि मैं फोर्ड हूँ। सूट बदलने या न बदलने से मेरी स्थिति में क्या अंतर पड़ता है।”

बात गई-गुजरी हो गई। मरम्मत किए पैंट-कोट से काम चलता रहा। बहुत दिनों बाद फोर्ड को इंग्लैंड जाना था, सो सेक्रेटरी ने फिर सूट बदलने की आवश्यकता बताई और कहा, “नये देश वालों के सामने तो पोशाक बढ़िया ही होनी चाहिए।”

फोर्ड गंभीर हो गए और बोले, “उस देश में मुझे जानता ही कौन है, जो मैं उन पर रौब गाँठने के लिए बढ़िया पोशाक सिलाऊँ। अजनबी के कपड़ों पर कौन ध्यान देता हैं?”

सचिव निरुत्तर हो गए। फोर्ड मरम्मत किए वस्त्र को धुलाकर ही इंग्लैंड की यात्रा पर चले गए। यह है महापुरुषों की सादगी, जो उनके इस गुण के कारण ही उन्हें श्रद्धास्पद एवं वैभववान् बनाती है।


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