अग्नि संस्कार किया (kahani)

May 2003

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महान वैज्ञानिक माइकेल फैराडे उन्नीसवीं सदी में पैदा हुए। उन्हें दिनभर व्यस्त रहना पड़ता था, पर शाम को घर आते ही पत्नी के मनोरंजन और बच्चों को दुलारने में लग जाते। एक बार उनकी पत्नी बीमार पड़ीं तो लगातार तीन हफ्ते रात को जागकर उनकी तीमारदारी करते रहे।

उनकी पत्नी ने उनके संबंध में संस्मरण लिखते हुए कहा है, उनके साथ हर दिन सुखपूर्वक बीता। वृद्धावस्था आने पर हम लोगों ने जाना कि दाँपत्य जीवन की सफलता के सूत्र क्या हैं? उन सूत्रों को अपनाकर ही हमने संघर्षमय जीवन जीते हुए भी स्वर्गीय आनंद के दिन काटे और जाना कि दाँपत्य जीवन की उपलब्धियाँ कितनी सुखद और उमंगभरी होती हैं।

एक बालक की मृत्यु हो गई। अभिभावक उसे नदी तट वाले श्मशान में ले पहुँचे। वर्षा हो रही थी। विचार चल रहा था कि इस स्थिति में संस्कार कैसे किया जाए।

उनकी पारस्परिक वार्त्ता में निकट उपस्थित प्राणियों ने हस्तक्षेप किया और बिना पूछे ही अपनी−अपनी सम्मति भी बता दी।

सियार ने कहा, “ भूमि में दबा देने का बहुत माहात्म्य है। धरती माता की गोद में समर्पित करना श्रेष्ठ है।” कछुये ने कहा, “गंगा से बढ़कर और कोई तरण−तारणी नहीं। आप लोग शव को प्रवाहित क्यों नहीं कर देते?” गिद्ध की सम्मति थी, “ सूर्य और पवन के सम्मुख उसे खुला छोड़ देना उत्तम है। पानी और मिट्टी में अपने स्नेही की काया को क्यों सड़ाया−गलाया जाए?”

अभिभावकों को समझने में देर न लगी कि तीनों के कथन परामर्श जैसे दीखते हुए भी कितनी स्वार्थपरता से सने हुए हैं। उनने तीनों परामर्शदाताओं को धन्यवाद देकर विदा कर दिया। बादल खुलते ही चिता में अग्नि संस्कार किया।


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