अपनों से अपनी बात - विश्व भर में उमड़ता वासंती सैलाब

May 2003

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गायत्री तीर्थ हरिद्वार, गायत्री तपोभूमि मथुरा एवं क्षेत्रों में विगत दिनों काफी कुछ गतिविधियाँ हुई हैं। परिजन पाक्षिक (प्रज्ञा अभियान) समाचार-पत्र के माध्यम से काफी कुछ पढ़ते रहते हैं, पर ‘अखण्ड ज्योति’ जितने लोगों तक पहुँचती है, उतनों तक पाक्षिक नहीं जाता। अतः दिसंबर 2002 से अप्रैल 2003 तक की गतिविधियों का एक लेखा-जोखा इस बार की अपनों से अपनी बात में दिया जा रहा है।

भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की विकास यात्रा

इस वर्ष (2002-2003) की भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा पूरे भारत में बत्तीस लाख से अधिक छात्र-छात्राओं के माध्यम से संपन्न हुई। अक्टूबर से जनवरी के बीच विभिन्न प्राँतों में अलग-अलग समय पर संपन्न इस परीक्षा से इस बार रिकॉर्ड संख्या में विद्यार्थी, उनके अभिभावक, अध्यापकगण जुड़े हैं। हर परिजन ने उसमें बढ़-चढ़कर पुरुषार्थ किया है। सभी ने अपना समय देकर विद्यालयों से संपर्क किया, छात्रों व अध्यापकों को आश्वस्त किया एवं मात्र दस रु पया प्रति विद्यार्थी के आधार पर पाठ्यपुस्तकों का वितरण किया गया। प्रश्नपत्र इस बार देवसंस्कृति का वितरण किया गया। प्रश्नपत्र इस बार देवसंस्कृति विश्वद्यालय के कुलसचिव व उनके क्षेत्र के तथा विभाग के सहयोगियों द्वारा बनाया गया। समय पर कुशलतापूर्वक सारी परीक्षाएँ पूरी हुई। अब उनकी परीक्षा-पुस्तिकाएँ समयदानी परिजन निःशुल्क जाँच रहे हैं। स्थान-स्थान पर परिणाम घोषित कर पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया भी आरंभ हो गई है। राजस्थान में तो विषयवस्तु पर चर्चा द्वारा महाविद्यालयों को भी इस शृंखला में सम्मिलित कर लिया गया है।

इस वर्ष (2003-2004) के लिए तैयारी पूर्व से ही आरंभ क र दी गई एवं जनवरी 2003 से ही प्रदेशवार दो दिवसीय विचारगोष्ठी-सुझाव-परामर्शप्रधान सत्र शाँतिकुँज में आयोजित हुए। लगभग सभी प्राँतों के ढाई हजार से अधिक ही व्यक्ति यहाँ शाँतिकुँज आकर गए। मुद्रण-प्रकाशन इस वर्ष अप्रैल अंत तक समाप्त कर मई-जून में सामग्री का वितरण हो, ऐसा सोचा गया है। गायत्री तपोभूमि, मथुरा में ही यह कार्य किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सभी में ही यह कार्य किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त सभी से विचार-विमर्श कर पाठ्यसामग्री व प्रमाण-पत्र को और अधिक आकर्षक बनाया जा रहा है। सभी से सही संख्या अभी से निर्धारित कर सूचना भा.सं.ज्ञा.प. के केंद्रीय कार्यालय को मई अंत तक भेजने को कहा जा रहा है। स्थान-स्थान पर विगत परीक्षा के आधार पर ‘संस्कृति मंडलों’ की स्थापना भी गति पकड़ रही है। पाँच-पाँच प्राणवान छात्रों के ये मंडल प्रत्येक विद्यालय में बनेंगे। ऐसा अनुमान है कि प्राय। पैंतीस हजार विद्यालयों ने इस वर्ष भागीदारी की है। यदि प्रत्येक में पाँच-पाँच छात्र गायत्री परिवार से जुड़ गए व छात्र-छात्राओं व केंद्र के बीच कड़ी बन गए तो हर वर्ष पौने दो लाख नए कार्यकर्त्ता शाँतिकुँज को मिल जाएँगे। सभी परिजन इन मंडलों की स्थापना की महत्ता को समझ रहे हैं। व मूल्यपरक शिक्षा पर आधारित देवसंस्कृ ति विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के सतत संपर्क में है।

विद्या-विस्तार कार्यशाला एवं युग त्रषि के जीवनदर्शन पर त्रिदिवसीय आयोजन

वसंत पर्व 2003 बड़ा ऐतिहासिक रह्वहा। इस पर्व की पूर्व वेला में एक विद्या-विस्तार कार्यशाला आयोजित की गई जो 4 व 5 फरवरी के दिन रखी गई। 4 फरवरी से एक विलक्षण प्रदर्शनी सप्त आँदोलनों एवं युगऋषि के जीवनदर्शन पर उनके आध्यात्मिक जन्मदिवस पर विश्वविद्यालय में आयोजित की गई। इस प्रदर्शनी से मिशन के बहुआयामी स्वरूप को समझा जा सकता था। छोटे-छोट पाँच वर्षक के बालकों से लकर बड़े छात्र-छात्राओं व विश्वविद्यालय के आचार्यगणों ने भी गुरुसत्ता के जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। तीन दिन मानो पूर्णतः गुरुसत्तामय हो गए थे। उसके साथ ही एक नाटक जो प्रायः ढाई घंटे का था, शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ के हॉल में परमपूज्य गुरुदेव के जीवन पर मल्टीमीडिया एवं विश्वविद्यालय के छात्रों के अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। वसंत पर उपस्थित सभी परिजन इससे लाभान्वित हुए।

विद्या-विस्तार कार्यशाला अपने में अनूठी थी। युग-साहित्य में रुचि रखने वालों एवं विस्तार पटलों के परिजनों की इस प्रकार की प्रथम कार्यशाला को सभी ने बहुत ही सराहा। पूज्यवर स्वयं कहते थे कि मेरा स्वरूप मेरे क्राँतिकारी विचारों में छिपा पड़ा है। उसे जन−जन तक पहुँचा दो। मात्र चार दिन पूर्व टेलीग्राम, फैक्स एवं फोन की चर्चा के प्रभारी कार्यशाला में पहुँच गए। कार्यशाला के साथ पूज्यवर के साहित्य (3200 पुस्तकें, 70 खंड वाङ्मय) के एक अंश की स्वतः बोलती, जीती−जागती प्रदर्शनी भी मुरादनगर के परिजन प्रदीपराव के सहयोग से शाँतिकुँज कार्यकर्त्ताओं ने लगाई। इसे देखकर इसकी सार्थकता सभी ने महसूस की। बीच−बीच में गुरुमत्ता के सद्वाक्य शोभायमान थे। अब हर विस्तारपटल सहित सभी बड़ी शक्तिपीठों पर ऐसी स्थायी प्रदर्शनी लगाने का मन बन रहा है, ताकि गुरुसत्ता के विचार चहुँओर पहुँचें। मुरादनगर शाखा ने साहित्य विक्रय हेतु एक पोर्टेबल स्टाँल लगाया था, जो कभी भी हटाया व लगाया जा सकता है।

सभी जानते हैं कि परमूज्य गुरुदेव ने जीवनभर जीवनकला के हर पहलू पर बड़े विस्तार से लिखा है। वे कहते थे कि हम बुकसेलर नहीं, न ही अखबारनवीस हैं। हम तो क्राँतिधर्मी विचारों के पोषक हैं। इसी आधार पर विगत वर्ष साहित्य विस्तार-पटलों की स्थापना का क्रम चला। जिनकी संख्या अब साठ को पार कर गई है। इस पत्रिका के पहुँचने तक यह सौ तक पहुँच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं करना चहिए। इन विस्तार-पटलों पर पुस्तकों वीडियो कैसेट, सीडी तथा प्रचार-सामग्री उपलब्ध रह्वहती है। जो गायत्री तपोभूमि मथुरा या शाँतिकुँज हरिद्वार बार-बार नहीं जा पाते, उन्हें अपने आस-पास ही यह सब सुलभ हो सकता है। इसकी एक सूच्ी अगले अंकों में प्रकाशित की जाएगी, ताति पाठकों-परिजनों को आसानी हो। कार्यशाला में दिए गए सुझावों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के सेट तैयार किए जा रह्वहे हैं, ताकि पर्व विशेषों, आयोजन-विशेषों पर उनकी तदनुसार बिक्री की जा सके। गायत्री ज्ञान मंदिर लखनऊ ऐसे एक आदर्शतंत्र के रूप में उभरा है। वहाँ गुरुसत्ता का पूरा ज्ञानशरीर प्रदर्शित है। सभी से इसी तरह के केंद्र बनाने का आग्रह किया गया है।

छपाई व प्रकाशन का एक विराट तंत्र खड़ा हो रहा है गायत्री तपोभूमि में

मथुरा की गायत्री तपोभूमि में सभी परिजनों के भावभरे सहयोग से परमपूज्य गुरुदेव के संपूर्ण साहित्य के मुद्रण व प्रकाशन का एक विराट तंत्र खड़ा किया जा रहा है। इसके अंतर्गत एक चार रंगों वाली आँफसेट प्रिंटिंग मशीन व एक बाइंडिंग मशीन ली जानी है। पतन-निवारण की सेवा के मिमित्त पूज्यवर के श्रेष्ठ विचार जन-जन तक पहुँच सकें, यही सोचकर वर्तमान सेटअप के अतिरिक्त यह तंत्र खड़ा करने का मन बना लिया है। सहयोग व मार्गदर्शन शांतिकुंज का रहेगा। अर्थाभाव में कार्य न रुके, इसलिए परिजनों से भावभरा अनुरोध किया गया है कि दो करोड़ रुपये की राशि से होने वाली इस स्थापना हेतु दिल खोलकर राशि मथुरा भेजें। संपर्क-सूत्र व्यवस्थापक गायत्री तपोभूमि मथुरा ही हैं। यहाँ भारत की सभी भाषाओं तथा विदेश की छह भाषाओं में युग साहित्य के प्रकाशन की योजना भी बन रही है। निश्चित ही बनकर खड़ा होने पर यह अपने आप में एक अद्वितीय विचारों के विस्तार का तंत्र होगा।

तंत्राधिपति-प्रज्ञेश्वर महादेव की विश्वविद्यालय के केंद्र में स्थापना

’महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया’ के लेखन से लेकर अब तक हम पूज्यवर के साहित्य को देखें तो उनका चिंतन सतत युग निर्माण हेतु महाकाल की विशिष्ट भूमिका की ओर इंगित करता दिखाई देता है। इस संबंध में विस्तार से लिखते-लिखते 1988-89 में परमपूज्य गुरुदेव द्वारा जो क्राँतिधर्मी साहित्य लिखा गया, तब तक की यात्रा में ‘एतद् कर्म प्रधान श्रीमन्महाकालाय नमः’ और जुड़ गया। दीपयज्ञ में उनने प्रधान देवता के रूप में महाकाल-सदाशिव भगवान शिव को ही स्थापित किया। उनका मत रहा कि आद्यशक्ति गायत्री युग परिवर्तन की अपनी प्रज्ञावतार वाली भूमिका महाकाल के माध्यम से ही निभाएँगी। इसी शृंखला में उनने पुस्तिका लिखी, ‘नवसृजन के लिए महाकाल की तैयारी।’ उनने बार-बार लिखा व कहा कि सतयुग के प्रधान देवता ब्रह्मा, त्रेता के सूर्य एवं द्वापर के विष्णु रहे हैं। अब कलियुग को बदलने में सक्षम युगाधिपति-तंत्राधिपति महाकाल ही हैं। इसी कारण संभवतः जहाँ-जहाँ आद्यशक्ति गायत्री स्थापित थीं, वहाँ स्वतः महाकाल आकर विराजते गए अथवा जहाँ महाकाल थे, वहाँ आद्यशक्ति के विग्रह की स्थापना हो गई।

शाँतिकुँज भी अपवाद नहीं है। पहले भी यहाँ गायत्री महाशक्ति के एक छोटे-से मंदिर के साथ सप्तर्षियों के समक्ष सात शिवलिंग स्थापित रह्वहे हैं। शाँतिकुँज परिसर में एक छोटा महाकाल का मंदिर भी है, किंतु अब बड़े विराट रूप में प्रज्ञेश्वर महादेव देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर के केंद्रविंदु में आकर विराजमान हो गए हैं। हमें यह विशाल ज्योतिर्लिंग नर्मदा तट से लाकर नासिक के गारगोटी म्यूजियम के प्रमुख, अपने प्राणवान कार्यकर्त्ता श्री कृष्णचंद्र पाँडेय जी के माध्यम से प्राप्त हुआ। प्रायः साढ़े सात क्ंिवटल भार एवं लगभग 5 फीट &साढ़े तीन फीट के बड़े आकार का यह शिवलिंग विधिवत पूजन द्वारा18−4−2002 को नासिक में शाँतिकुँज द्वारा स्वीकार लिया गया। इस बीच महाकाल का तुँगनाथ(पंचकेदार) के स्थापत्य के अनुरूप एवं वास्तुविदों के परामर्श के अनुरूप एक विराट परिसर विश्वविद्यालय के केंद्र में विकसित किया जा रहा था। बड़े ही सुँदर लैंड स्केपिंग के साथ एक परिसर विकसित हो गया।

14 जनवरी 2003 मकरसंक्राँति के दिन त्र्यंबकेश्वर महादेव के स्थान गोदावरी तट नासिक नगरी (कुँभस्थली) से एक चौबीस कुँडीय महायज्ञ के साथ एक रथयात्रा रवाना की गई, जिसमें महाकाल को विशेष ढंग से स्थापित किया गया था। एक माह में प्रायः बत्तीस स्थानों से होती हुई नर्मदा−यमुना को पार कर गंगाटत पर यह यात्रा 13−2−03 के दिन सामाप्त हुई। उसी दिन उस बहुशिला को शास्त्रोक विधान के साथ स्थापित कर दिया गया, जिस पर जलहरी एवं फिर विग्रह को स्थापित करना था। अखण्ड जप (गायत्री मंत्र, महामृत्युँजय मंत्र ॐ नमः शिवाय) का क्रम चल पड़ा एवं 26 फरवरी को 108 कुँडी यज्ञ के शुभारंभ के साथ महाशिवरात्रि 1 मार्च के दिन ब्राह्ममुहूर्त में प्रज्ञेश्वर महादेव की बरसती मूसलाधार बारिश के बीच स्थापना हो गई। बिजली कड़क रही थी, मार्च के बावजूद कड़ी ठंढ थी, पर सारा दृश्य शिवमय हो गया था। बड़ा ही विलक्षण अविस्मरणीय समारोह बन गया। हजारों परिजनों की उपस्थिति में गायत्री तपोभूमि मथुरा, शाँतिकुँज हरिद्वार के प्रतिनिधिगणों के सान्निध्य में श्री के.सी पाँडे दंपती, श्री वीरेंद्र अग्रवाल(जयपुर), श्री अमरनाथ गर्गं (दिल्ली) एवं श्री पी.के तिवारी (दिल्ली) दंपत्तियों द्वारा यजमानों की भृमिका निभाई गई। गोमुख के जल से रुद्रभिषेक हुआ और जय महाकाल के नारों से सारा परिसर गूँज उठा। निश्चित ही यह स्थापना युग परिवर्तन की प्रक्रिया को तीव्र गति देगी, ऐसा ही कुछ संकेत 129 वर्षीय वीरराग स्वामी कल्याणदेवज जी महाराज ने अपने उद्बोधन में दिया। संयोग से विश्वविद्यालय के भूमिपूजन में भी स्वामी जी की उपस्थिति थी।

निंरतर आगे बढ़ता देवसंस्कृति विश्वविद्यालय 1 जनवरी 2003 से ‘धर्म विज्ञान’ की विधा को छह माह के प्रमाण पत्र कोर्स के साथ आरंभ कर दिया गया। चालीस छात्र−छात्रराएँ इसमें भाग ले रहे हैं। एवं एक देवालय प्रबंधक के रूप में तैयार हो रहे हैं। 9 जुलाई से दूसरा सत्र आरंभ होगा। इस बीच देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के योग विभाग के छात्र−छात्राओं ने 67 विश्वविद्यालय की योग प्रतियोगिता में अमृतसर में भागीदारी की। एकवर्षीय डिप्लोमा की छात्रा उत्तराँचल का गौरव कु. इंदु शर्मा ने व्यक्ति गत प्रतिस्पर्द्धा में प्रथम स्थान लेकर विश्वविद्यालय का सम्मान बढ़ाया।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में एक ‘एलराँन हबर्ड खंड’ स्थापित किया गया है। 1911 में जन्में श्री हबर्ड ने विचार विज्ञान− वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर 5000 से अधिक किताबें लिखी हैं। अमेरिका के उनके कार्यकर्त्ताओं ने ये पुस्तकें श्री थॉमस गोल्डनित्ज के माध्याम से विश्वविद्यालय को दानरुप में सौंपी। इस वर्ष विवेकानन्द जयंती विश्वविद्यालय के छात्र−छात्राओं ने वक्तता, विभिन्न प्रसंगों की चर्चा, उनके जीवन−दर्शन पर प्रदर्शनी एवं एक बड़ी सुँदर नाट्यप्रस्तुति के माध्यम से मनाई। विवेकानंद के रामकृष्ण के पास आने से लेकर उनके विश्वविख्यात बनने एवं भगिनी निवेदिता को शक्ति देकर महाप्रयाण तक के वृत्तांत ने सभी के दिलों को छू लिया। यह मंचन शाँतिकुँज के केंद्रीय सत्संग हॉल में हुआ।

विराट सम्मेलन, कार्यकर्त्ता समागमों की ऑ चारों ओर धूम

इन दिनों भारम के कोने−कोने में कार्यकर्त्ता सम्मेलनों, युवा सम्मेलन, रचनात्मक आयोजनों को मनाया जा रहा है। पिछले दिनों जोनव्यापी संगठन के दौरों के बाद इन आयोजनों के गति पकड़ी। बैतूल युवा सम्मेलन, गोंडा पूर्वांचल सम्मेलन, अखिल गुजरात सम्मेलन बड़ोदरा एवं जामनगर, आँचलिक सम्मेलन बस्तर, बहराइच (माता भगवती कुँज) की रचनात्मक पीठ के विराट आयोजन आदि ने एक नई शृंखला आरंभ की है। अगला पूर्वांचल का सम्मेलन नवंबर 2003 (7, 8, 9) में गोरखपुर में तथा युवा सम्मेलन जबलपुर में नवंबर की 1, 2 तारीखों में प्रस्तावित है।

इस बीच कोलकाता के परिजनों ने 24 एकड़ भूमि गायत्री चेतना केंद्र हेतु क्रय कर ली है। निर्माण श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट के अधीन होगा। हैदराबाद में मुँबई मार्ग पर एक विशाल स्थापना इसी तरह की श्री विश्वनाथ जी के सौजन्य से 3500 वर्गगज के प्लाँट में होने जा रही है। चारों ओर उल्लास भरा वातावरण है। विदेश के लिए मई में पाँच दल प्रवास पर निकल रहें हैं।


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